दाल रे दाल तेरा ये हाल ?

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
गरीब की दाल अब अमीरों की शान बन गयी है।देश में ही दाल रोटी वाली कहावत के मायने बदल गए है।भारी भरकम भावों के चलते आमजन अभी तक पूरी तरह से- प्रताड़ित ही नजर आया है।
दाल पर खूब हो हल्ले के बाद, सरकार ने देश के 13 राज्यों में
छापामार कारवाही करते अपनी साख बचाने का प्रयास ही किया है।
अबतक छापो मे 75 हजार टन दाल का जखीरा तो पकड लिया किन्तु दाल अभी भी आम आदमी से दूरी बनाकर मुँह चिडाती दिख रही है !
अब इसे दाल की किस्मत कहिये याआम आदमी का भाग्य सब
बराबर ही तो लगता है ।अकेले महाराष्ट्र में लगभग साढ़े 46 टन दाल
जमाखोरो से जब्त हुई है राजस्थान मे यह आंकडा 2222.00 टन रहा
13 राज्यों के 60 हजार से ज्यादा छापों मे यहा पकडी गई दाल का जखीरा मिला है।इससे आभास होता है की सरकारी कारिंदों को पहले से जमाखोरी का पता था ।अभी भी केंद्र सरकार यही मानकर चल रही है की राशन की दूकानों पर दाल बिकने से कुछ राज्यों में लोगों को राहत पहुंची है ।
ताज्जुब है की सरकारी अमले की इस कारवाही से दालों के भावों में कटौती के कोई परिणाम नजर नहीं आये हैं।इधर दाल रोटी के जुगाड़ में आमजन कोई रास्ता ना मिलने से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।वो सिर्फ अलग अलग तरह की दालों के नाम लेकर ही सरकार को कोस रहा है।इसी से यह जुमला भी सटीक बैठता दिखाई दे रहा हैकि, दाल रे दाल तेरा ये हाल …..?
बात केवल दाल की क्या करिये महंगाई ने कमर तोड़ मुनाफा दिया है इन जमाखोरों को।अब तो सरकार को ऐसे पापियों के लिए सख्त क़ानून लाने की तैयारी करनी चाहिए।पहले प्याज ने रुलाया था अब दाल ने तो जायका ही सुखा दिया है ।वर्ना लोग तो यही मानते रहेंगे की वो भी भावों की इस बढ़ोतरी के किस्से में शामिल है!
▫शमेंद्र जड़वाल.

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