मोदी बनाम आज़म और बाबरी बनाम दादरी बिहार चुनाव का राजनीतिक अस्त्र सिद्ध हुए

दादरी मामले में मोदी की खामोशी और आज़म खां की बेबाकी बिहार चुनाव का केंद्र बिंदू बनी !

नोमान अंसारी
नोमान अंसारी
देश की सियासी फजाओं में इंसानियत,सदभावना,शांती और कानून के राज्य के प्रती सजगता का सूरज नमूदार हुआ और देखते ही देखते सारे देश के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवी इस तरह जाग गये कि बिहार चुनाव एक प्रयोगशाला बनकर नफरत बनाम मोहब्बत की सियासी जंग बन गया एक तरफ नफरत की सियासत का सिपहसालार मोदी गठबंधन को माना जाने लगा और दूसरी जानिब लालू नितीश गठबंधन को मोहब्बत का अलाबरदार माना जाने लगा और आखिरकार बिहार के राजनैतिक युद्ध का परिणाम सदभावना की जीत के रूप में देश ओ दुनिया के सामने आ गया लेकिन उस परिणाम में बाबरी मस्जिद आन्दोलन के नेता आज़म खां का नाम एक तारीखी किरदार के रूप में बाबरी से दादरी तक का राजनैतिक सफ़र करता दिखाई दिया और मुल्क के सेक्युलर बहुसंख्यक भाइयों ने इस बार बिहार के राजनैतिक आन्दोलन से यह साबित कर दिया कि वहां गांधी जीत गया और गोडसे हार गया !

-नोमान अंसारी- बिहार विधान सभा चुनाव हिन्दुस्तानी सियासी परिवर्तन का बड़ा सन्देश लेकर आया है ! अगले वर्षों में लगातार होने वाले विधानसभा चुनाव खासतौर पर उप्र और बंगाल के चुनाव बिहार के मैनडेट से न केवल मुतासिर होंगे बल्की दिल्ली में हिन्दुस्तानी तख़्त ए ताऊस पर कौन बैठेगा इसका भी रास्ता बनाएगा ! बिहार चुनाव का विश्लेषण बिहार प्रदेश की और भारत की बहुसंख्यक आबादी,शांती सदभाव और गांधीवादी मूल्यों के लिए स्नेह और समर्पण का भाव पूरी दुनिया को यह सन्देश देता है कि हिन्दुस्तान में नफरत और खूंरेजी की खेती करने वालों का कोई स्थान नहीं है !चाहे वह किसी मज़हब या दल के हों !
आलेख का शीर्षक मोदी बनाम आज़म खान इसलिए है कि वैचारिक धरातल पर अगर बिहार चुनाव से बाहर होते हुए भी देश के किसी राजनेता ने मोदी समर्थकों के आधारहीन,तथ्यहीन और उन्मादी नारों का व्यवस्थित और वैचारिक प्रतिउत्तर दिया है तो उस नेता का नाम आज़म खान है ! नितीश लालू बिहार की धरती पर सत्ता संघर्ष में यकीनी तौर पर पूरी समझदारी से धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के रक्षक के रूप में अपनी शतरंजी बिसात बिछाये हुए थे लेकिन वह मुस्लिम वर्ग जिसको भाजपा अपनी राजनैतिक फिल्म का आयटम किरदार समझ कर बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं को बरगलाती है इस बार देश के बहुचर्चित मुस्लिम नेता आज़म खां ने भाजपा के हाथ यह मौक़ा नहीं लगने दिया ! कभी राम को अपने राजनीतिक मंच के विस्तार का जरिया बनाने वाली भाजपा इस बार गाय को मुसलमानों के सिर माथे मंड कर बिहार के हिन्दू भाइयों के धुर्विकरण के लिए इस तरह आमादा थी कि स्वर्गीय अखलाक़ साहब को शक की बुनियाद पर दादरी में मौत के घाट उतारकर गौमाता के रक्षक के रूप मे बिहार चुनाव में नितीश लालू गठबंधन को पराजित करना चाहती थी लेकिन जब अपनी बेबाकी के लिए मशहूर आज़म खां ने गौहत्या पर न केवल पाबंदी लगाने की बात कही बल्की गाय के अंतिम संस्कार के लिए केंद्र में बेठी मोदी सरकार से कब्रस्तान की मांग करते हुए बीफ मटन एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों के लायसेंस रद्द करने का मतालबा केंद्र के सामने पेश किया और मोदी सरकार में बीफ मटन सप्लाई के व्रद्धी होने के सरकारी आंकड़े सामने रख दिए तथा इतिहास के आईने में मुस्लिम शासकों द्वारा बहुसंख्यक भाइयों की भावनाओं का अहतराम करते हुए गाय की हिफाज़त के लिए बनाये गए तारीखी कानूनों का तजकिरा कर दिया और आज़म खां ने देश की सबसे बड़ी विधानसभा में सबसे वरिष्ठ मंत्री के रूप में गाय के संदर्भ में बोलते हुए गाय का दूध फायदेमंद तथा गाय का गोश्त नुकसानदेह का ऐलान किया तब केवल नारों से गाये के प्रती श्रद्धा व्यक्त करने वाले धार्मिक उन्मादी साम्प्रदायिक संगठन आज़म खां के रचनात्मक सवालों का जवाब भी नहीं दे सके !
और जब धार्मिक बस्ती गोवर्धन परिक्रमा मथुरा में आजम खां जगत गुरु शंकराचार्य अधोक्ष्जान्न्द जी महाराज के निमंत्रण पर एक विशाल गौशाला के शिलानियास समारोह में भाग लेने के लिए पहुंचे तो तथाकथित गौ रक्षकों ने चार बच्चों को खडा कर के काली चिन्दियाँ दिखाने का प्रयास किया तब इस समारोह में भाग लेने पहुंचे आज़म खां के अनुयायी के रूप में सपा सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम ने सैकड़ों धर्मगुरुओं की मौजूदगी में अपने भाषण में कहा कि आप धर्मगुरु इन काली चिन्दी वालों को पहचानिये यह वह लोग हैं जो गाय की रक्षा के लिए,पालन पोषण के लिए बनने वाली गौशाला के शिलानियास से आज़म खान को रोकना चाहते हैं ! चौधरी मुनव्वर सलीम ने आगे इसी समारोह में कहा था कि यह वह अधर्मी तत्व हैं जो गाय की रक्षा नहीं बल्की गाय को राजनीत के बाज़ार में खड़ा कर के उसके नाम पर वोट लेना चाहते हैं ! इस मौके पर आज़म खां ने गेरुआ वस्त्रों की भारी भीढ़ को गवाह बनाकर यह कहा कि आप संतों की ज़िम्मेदारी बंटी है कि वह गाय को राजनीत के बाज़ार में जाने से रोके गाय को सड़कों से उठाकर उन महलों में स्थापित करे जहाँ आज कुत्ते वास करते हैं !आज़म खान ने इस धर्मसभा में कहा था कि चूंकी गाय में आपकी श्रद्धा है इसीलिए देश का इतिहास गवाह है कि हम मुसलमानों ने आपकी भावनाओं का अहतराम करते हुए हमेशा गाय के रक्षक का किरदार अदा किया है और आज भी मोदी सरकार से मतालबा करता हूँ कि वह गाय पर सियासत के बजाये गाय में श्रद्धा व्यक्त करते हुए बुनियादी कदम उठाये !
बस यहीं से बिहार चुनाव में गाय को राजनैतिक अस्त्र के रूप में लगातार उपयोग करने की कोशिश करने वाली भाजपा बेज़बान हो गयी गाय और दादरी हादसा सैकड़ों सालों तक एक दुसरे से सम्बंधित रहकर मानवीय मूल्यों को झिंझोड़ता रहेगा जब एक योजना के तहत एक फ़ौजी के परिवार को गाय के नाम पर अपनी हैवानियत का शिकार बनाया गया तब देश के राजनैतिक समीक्षक गवर्नर उप्र की पूर्व आग्रह से ग्रस्त कार्यवाहिये जारी थी ! और कानून वयवस्था के नाम पर मानवीय मूल्यों की हत्या के नाम पर एक षड्यंत्र के तहत अखिलेश सरकार को निशाना बनाने की भरपूर तैयारी थी दूसरी जानिब बिहार चुनाव में गाय को अस्त्र बनाकर दादरी हादसे का भाजपा फायदा लेना चाहती थी लेकिन हमेशा अपनी सूज बूझ से बाबरी मस्जिद आन्दोलन से लेकर दादरी हादसे तक हिन्दुस्तानी सियासत को नई सिम्त देने वाले आज़म खान ने जब देश व दुनिया को यह सन्देश दिया कि दादरी हादसा पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से साम्प्रदायिक नारों से झुलसते हुए हिन्दुस्तान का प्रतिफल है और इसको किसी एक जिले या प्रांत से नहीं जोड़ा जा सकता बल्की देश में लगातार मानवीय संवेदनाओं को रौंदने वाले लोगों ने जो माहौल निर्मित किया है उस पर यदी पाबंदी आयद नहीं की गयी तो देश के किसी भी हिस्से में कोई भी दादरी बं सकता है ! आज़म खां के आरोपों से जब देश की मोदी सरकार घिर गयी तब अपनी पार्टी की सरकार की रक्षा करते हुए उन्होंने यू एन ओ जाने का ऐलान कर के दादरी का अपराधी मोदी सरकार को बनाने का एक सत्य पर आधारित राजनीतिक फार्मूला देश के सामने पेश कर दिया !
बस यही से देश की सियासी फजाओं में इंसानियत,सदभावना,शांती और कानून के राज्य के प्रती सजगता का सूरज नमूदार हुआ और देखते ही देखते सारे देश के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवी इस तरह जाग गये कि बिहार चुनाव एक प्रयोगशाला बनकर नफरत बनाम मोहब्बत की सियासी जंग बन गया एक तरफ नफरत की सियासत का सिपहसालार मोदी गठबंधन को माना जाने लगा और दूसरी जानिब लालू नितीश गठबंधन को मोहब्बत का अलाबरदार माना जाने लगा और आखिरकार बिहार के राजनैतिक युद्ध का परिणाम सदभावना की जीत के रूप में देश ओ दुनिया के सामने आ गया लेकिन उस परिणाम में बाबरी मस्जिद आन्दोलन के नेता आज़म खां का नाम एक तारीखी किरदार के रूप में बाबरी से दादरी तक का राजनैतिक सफ़र करता दिखाई दिया और मुल्क के सेक्युलर बहुसंख्यक भाइयों ने इस बार बिहार के राजनैतिक आन्दोलन से यह साबित कर दिया कि वहां गांधी जीत गया और गोडसे हार गया !

error: Content is protected !!