भ्रष्टाचार की हरी-भरी जड़ें काटना मुश्किल ही नहीं असंभव भी !

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
जबतक जन-जन का राष्ट्र के प्रति प्रेम, आदर, श्रद्धा और – समर्पण के भाव का नाता दिल से नहीं – जुड़ेगा, तबतक भ्रष्टाचार की पनपती हरी-भरी जड़ों को काट डालना, लगभग असंभव ही है।
यों देखा जाय तो असंभव कुछ भी नहीं,लेकिन कुर्सी पर बैठे कई लोगों के रग-रग में बसी इस खतर – नाक बीमारी से निपटने को एकजुटता और पूरे आत्म- विश्वास का मजबूत होना बहुत लाजमी है।
हितोपदेश में कहा गया है, “हे देवी वसुधा तुम ऐसे दुष्ट और ,धोखेबाज व्यक्तियों का भार कैसे वहन करती हो,जो भला – करनेवाले श्रेष्ठ व्यक्तियो से भी धोखा करते है।”
इसीक्रम में सुकरात भी कहते हैं- “हमारा ध्येय सत्य होना चाहिये ना कि,सुख।” आधुनिक युग मे धर्म और ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव हुआ है, और भौतिक – संसाधनों के अतिक्रमण का साया मानव – जीवन पर गहराया है, त्यों-त्यों व्यक्ति धन संग्रह और और उसे अर्जित करने की होड़ में नित नए तरीके- मानस में निर्मित कर रहा है।
अपने आस पास और समाचार पत्रों की रोज-मर्रा की ख़बरों में देश में पल रहा भ्रष्टाचार का मुद्दा आम हो चला है। ख़बरों ही में जहाँ सरकारी तंत्र की हर रोज पोल खुल रही है, वहीँ सादा और ईमानदार व्यक्ति ठगा जा रहा है। देश की छोड कैवल अजमेर ही की बात करे तो ताजा-ताजा एसटीपी महाशय को 40 – हजार की घूस लेते एसीबी ने रंगे हाथों धर लिया है।यों उनकी दो दिन की कमाई पौने दो लाख के करीब मिली बताई । एन्टीकरप्शन ब्यूरो की होती अक्सर कई — छापामारी में ऐसे मामले बार बार खबरो की सुर्खियां बनते रहे है। मगर ये ऐसे लोग हैं, की डर नही रहे।
आपको याद होगा, वर्ष 2013 में यहाँ एक एसपी, एक एएसपी और दलाल सहित 9 के करीब- थानेदारों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया था।और इस “थाना मंथली प्रकरण ” मे 20 गवाह बनाये गए जिनमे अधिकाँश पुलिस के ही लोग थे। आज की खबर में वो 20 गवाह न्यायालय में अपने पूर्व बयानों से मुकर गए हैं।
गौरतलब हैकि, सरकार ने न्यायलय में विचाराधीन इस मामलै के बावजूद बहाल कर दिया था
इससे उसकी मशा पर खडे़ सवालो का उत्तर मिलना शुरू हो गया है। एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के वरिष्ठ- पत्रकार भाई रमेश अग्रवाल ने अपनी बेबाक टिप्पणी —
“देर नही अधेर है” मे विचार अभिव्यक्त करते लिखा है,- “यह कहने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं की गवाही देनेवाले इन सिपाहियों ने दो में से – एकबार निश्चित रूप से झूठ बोला है ,– खुलेआम बोले गये इस सामुहिक झूठ से जाहिर है कि, इन पेशेवर झूठे लोगों को ना तो अपने खिलाफ किसी कानूनी कारवाही का डर है, और न लोक लाज ।”
मेरा कहना ये है कि, लोकलाज तो तब हो जब ,ऐसे भृष्ट लोगों और उन्हें सहारा देनेवालों के दिलों में अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और श्रद्धा अवतरित होती । शहर की अकेली इस घटना ने अरसे तक लोगों को अचंभित किये रखा ।ऐसी घटनाएं देश के हर कोने में आये दिन हो रही हैं। भरष्टाचार पर नियंत्रण के लिए गठित फौज अनेक मामले आयेदिन पकड़ती रही है। लेकिन बाद के कानूनी निर्णयों तक ऐसी अनेक – गलियां निकाल ली जाती हैं जिनसे आरोपी बाकायदा सुरक्षित बच निकले। और पूरी मेहनत का यही हश्र होता है।
यह सही है कि, भरष्टाचार से ऐंठी गई रकम का बंटवारा ऊपर तक होता है,मिल बैठ कर सौदे होते हों तब इसको जड़ से मिटाया कैसे जा सकता है? ऐसे भृष्ट तंत्र को किसी का भय नहीं है। आपको यह भी याद होगा कि ,अभी कुछ दिनों पहले इस खुशनुमा प्रदेश की राजधानी में खान – आवंटन मामले में एक सचिव स्तर के बडे अधिकारी की गिरफ्तारी हुई थी, करोंडो का यह व्यापार क्या अकेले इस अफसर ने बिना किसी मत्री स्तर पर जानकारी दिए या वरद हस्त प्राप्त किये कर लिया होगा कबाड़ा ? बहरहाल अब पोलपट्टी और बतोर दिखावे के सिंघवी महाशय और साथी जेल मेहै और मजे से है ।भविश्य मे ऐसे हालातो के चलते लीपा पोती की गन्ध आना तो लाजमी है।
कुलमिलाकर बात यह कि,ऐसे भ्रष्टजन न केवल राष्ट्र का अपमान करते चूक रहे हैं,बल्कि अपने और परिवार की आनेवाली पीढ़ियों को कैसी नसीहत दे रहे हैं? इनकी कारगुजारी से यह साफ साफ दिखाई देता है। जब अनेक जगह ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा हो, तब वरिष्ठ पत्रकार भाई के कथन सै मै स्वय पूरी तरह सहमत हूं वाकई ,”देर नहीं अंधेर है।” बस इसीसे यह अभिव्यक्ति आप तक ……

shamendra jarwal@blogspot.in

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