सहशुणी भारत में असहशुणिता पर चर्चा क्यों ?

aamir ansari-आमिर अंसारी- अभी शीतकालीन सत्र की शुरुवात भी सही से नहीं हुयी है कि संसदीय कार्यमंत्री नायडू ने सत्र शुरू होने से पहले ही यह ऐलान किया कि हम यानी मोदी हुकूमत असहशुणिता पर बहस करने के लिए तैयार हैं ! यानी एक बात तो लगभग तय हो गयी कि अब यह सत्र सहशुणिता बनाम असहशुणिता की भेंट चढ़ने वाला है ! मोदी हुकूमत के इन डेढ़ वर्षों से पहले इस (असहशुणिता) के जुमले का प्रयोग शायद भारतीय राजनीत में कभी भी इतना नहीं हुआ जितना कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुआ है ! तो सवाल यह पैदा होता है कि असहशुणिता शब्द का इस्तेमाल लगातार डेढ़ वर्षों से हो क्यों रहा है ?
अगर जवाब तलाशा जाएगा तो पता चलेगा कि जब मोदी जी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे तो ठीक उसी समय एक अखबार के साक्षात्कार में जब उनसे 2002 के गुजरात दंगों के बारे में सवाल किया गया तो मोदी जी ने उस धर्म विशेष की उपमा पिल्लै से दी जिसकी गर्भवती महिला के गर्भ को चीर कर आग में भून दिया गया था ! मोदी जी ने पहली बार गुजरात दंगों पर इस दौर में जब अपनी चुप्पी तोड़ी तो 2002 के मज़लूमों के ज़ख्मों को न सिर्फ हरा कर दिया बल्कि उस शब्द की भी नींव रख दी जो उनके प्रधानमंत्री बनने के पश्चात लगातार नए आयामों के साथ एक बुलंद इमारत की शक्ल में असहशुणिता के रूप में आज दिखाई दे रहा है !
मोदी जी ने जिस शब्द की बुनियाद अपने प्रधानमंत्री बनने से पहले रखी थी उसी नींव पर नयी तमीर मोदी जी के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही मोदी सरकार की अल्पसंख्यक एवं कल्याण मंत्री नजमा हेप्तुल्लाह ने की थी उन्होंने अपनी वज़ारत की कुर्सी पर बैठते ही कहा कि मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है और मैं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हूँ न कि मुस्लिम कल्याण मंत्री अभी नई सरकार के पहले दिन का सूरज गुरूब भी नहीं हुआ था कि जम्मू से लोकसभा सीट जीत कर आये और मोदी सरकार के मंत्री के रूप में अभी शपथ का एक घंटा भी नहीं गुज़रा था कि उन्होंने धारा 370 का राग ऐसा अलापा कि वोह नई सुबह जिसकी रोशनी के इंतज़ार में हिन्दुस्तानी अवाम ने सत्ता परिवर्तन किया था उस मतदाता के अरमान मोदी सरकार के गठन के प्रथम दिन ही ठन्डे हो गए और विकास का नारा बुलंद कर के सत्ता में आई मोदी सरकार ने मुल्क के सियासी और समाजी हालात को नए सिरे से गर्म कर दिया ! अभी धारा 370 का राग पूरी तरह से ख़त्म भी नहीं हो पाया था कि संवैधानिक ओहदों पर बैठे हुए लोगों ने समान आचार सहिंता का मामला इस तेज़ी से उठाया कि पूरा मुल्क सकते में आ गया ! सहनशील भारत को सत्ता में आते ही भाजपा के असहनशील जुमलों का शिकार होना पड़ गया !
मोदी जी की असहशुणिता की नींव पर यह तो बस शुरुवात थी तामीर ए इमारत की, अभी तो भारतवासियों को कुछ और भी देखना था यानी कि इसी बीच राममंदिर का राग फिर से अलापा गया और बाबरी मस्जिद की शहादत के आरोपियों को राज्यपाल के संवैधानिक ओहदों पर फ़ायज़ किया गया इसके बाद तो जैसे मोदी हुकूमत में यह साबित करने की होड़ लग गई कि कौन सबसे ज़्यादा कड़वा,ज़हरीला और असहनशील भाषा का इस्तेमाल कर सकता है ? तो सबसे पहले उस उप्र के सांसदों ने देश के माहौल को गर्म करना शुरू किया जिस उप्र से प्रधानमंत्री स्वयं चुनकर आए थे ! उसी उप्र को न सिर्फ साम्प्रदायक उन्माद का अड्डा लोकसभा चुनावों से पूर्व बनाया गया था बल्कि इन चुनावों के नतीजों के पश्चात भी उप्र को लगातार सांप्रदायिक उन्माद की भट्टी के रूप में भाजपा सांसदों ने भड़काए रखा यदि लोकसभा चुनाव के समय अमित शाह मुज़फ्फरनगर जाकर यह ऐलान करते हैं कि यह लड़ाई आत्मसम्मान की लड़ाई है हम तुम्हें सम्मान वापस दिलाएंगे ! तो मोदी जी ने खुश हो कर चुनाव पश्चात अमित शाह को भाजपा की कमान सौंप दी यदि लोकसभा चुनावों के परिणामों से पूर्व मुज़फ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम को स्वयं मोदी जी ने आगरा बुलाकर एक बड़ी जनसभा में सम्मानित किया था तो सरकार बनने के पश्चात भी एक दंगे के आरोपी के सम्मान में कोई कमी न रह जाये इसीलिए मोदी सरकार ने संगीत सोम को केंद्रीय सुरक्षा बलों की जेड श्रेणी सुरक्षा का साया भी उन संगीत सोम को अता कर दिया जिन पर दर्जनों मासूम और मज़लूम लोगों के जानलेवा मुज़फ्फर नगर दंगे का आरोप है ! न सिर्फ संगीत सोम बल्कि मुज़फ्फरनगर दंगे के दूसरे आरोपी संजीव बालियान को केंद्र में मंत्री के संवैधानिक ओहदे पर बैठाया गया !
यह दास्तान यहीं नहीं रुकी इन दोनों असहशुणिता फैलाने वालों के पश्चात उन साध्वी निरंजन ज्योति को भी केंद्रीय मंत्री की शपथ दिलाई गयी जिनके जुमले हमेशा इतने असहनशील होते हैं जो सहनशील समाज को विचलित कर देते हैं ! मोदी जी की असहशुणिता की बुनियाद पर यह वोह नई मंज़िलें तामीर हो रही थीं जो आगे चलकर एक ऐसी भयावह इमारत की शक्ल अख्तियार करने लगी कि फिर तो उप्र के सांसद साक्षी माहराज और योगी आदित्यनाथ ने तो जैसे तमाम सहशुणिता की हदों को पार करना शुरू कर दिया कभी वह मदरसों को अपनी ज़हरीली भाषा शैली का निशाना बना रहे थे तो कभी लवजिहाद और घर वापसी जैसे ज्वलंतशील जुम्ले समाज में परोस कर मुल्क के माहौल को असहनशील बनाते जा रहे थे ! कभी इसी तरह के लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमा मंडन कर रहे थे तो कभी मदर टेरेसा की क़ौमी खिदमात और सेवा भाव को भी धर्मान्धता की निगाह से देख रहे थे !
इसी बीच मोदी सरकार के वजूद में आने के बाद पहला विधानसभा चुनाव दिल्ली प्रदेश का हुआ और दिल्ली की सड़कों पर जब केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति ने रामज़ादे और हरामज़ादे की बहस को जन्म दिया तो सहनशील समाज आक्रामक हो उठा और उसने सियासत के नौसिखए केजरीवाल को दूसरी बार दिल्ली की सत्ता की चाबी भी ऐसी दी कि मोदी जी की भाजपा दिल्ली विधानसभा में नेता विरोधीदल की कुर्सी पाने के लिए भी महरूम हो गई !
दिल्ली विधानसभा के चुनावी नतीजे मोदी हुकूमत के लिए ऐसा आईना थे जिसमे केंद्र सरकार के द्वारा निर्मित असहशुणिता की इमारत की एक-एक ईंट साफतौर पर दिखाई दे रही थी ! इस चुनाव के पश्चात हिन्दुस्तान में जाती आधारित जनसंख्या के आंकड़े आए तो एक बार फिर योगी आदित्यनाथ,साक्षी माहराज और संघ ने मुस्लिम नफरत का बखान शुरू कर दिया जनगणना के आंकड़ों से विचलित होकर असहशुणिता की इस इमारत पर नई और बुलंद मंज़िल तामीर करते हुए मुसलमानों की प्रजनन पद्धति को सूअर की प्रजनन पद्धति से जोड़ा जाने लगा !
असहशुणिता की इस इमारत में सबसे भयावह और बदसूरत मंज़िल उप्र के दादरी में तामीर हुई जहाँ गौमांस सेवन के शक की बुनियाद पर एक फ़ौजी के पिता की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई ! इस हत्या ने तो जैसे भारतीय सहनशील समाज की सहन शक्ति को ही तोड़ दिया और इस हत्या के पश्चात तो असहशुणिता के जुम्ले ने हिन्दुस्तानी सियासत और सहाफत को अपने आगोश में ही ले लिया ! दादरी की घटना को लेकर मो.आज़म खान ने जब यू.एन.ओ जाने का ऐलान किया तो असहशुणिता की इमारत को बुलंद से बुलन्दतर करने वाले लोग भड़क उठे और उन्होंने मो.आज़म खान पर हमेशा की तरह राष्ट्रद्रोह के आरोप लगाना शुरू कर दिए !
लेकिन इस बार आज़म खान अकेले नहीं थे बल्कि उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाई हिन्दुस्तान के साहित्यकारों ने,कलाकारों ने,पत्रकारों ने,वैज्ञानिकों ने तथा अर्थशास्त्री और इतिहासकारों ने तथा मुल्क के लगभग हर राष्ट्रप्रेमी के मन मस्तिष्क में पिछले डेढ़ सालों के वोह हर असहनशील भाषा और जुमलों ने कौंधना शुरू कर दिया जिसने भारतीय सहशुणि स्वभाव पर हमला किया था !
इसी दौरान हिन्दुस्तान के दूसरे सबसे बड़े आबादी वाले प्रदेश बिहार में चुनावी दस्तक हुई और इस चुनाव को मुल्क मोदी सरकार के रिपोर्ट कार्ड के रूप में देख रहा था और बिहार की अवाम इस चुनाव को असहशुणिता बनाम सहशुणिता के रूप में लड़ रही थी ! और बिहार के मतदाता ने इस चुनावी जंग में असहशुणिता की इमारत को धवस्त करने के मंसूबे से वोट की ऐसी चोट मारी है यदि उस चोट को मोदी हुकूमत संवेदनशील हो कर महसूस कर ले तो भारत एक बार फिर गुले गुलज़ार हो सकता है,लेकिन हाल की आमिर खान की टिपण्णी के पश्चात जिस तरह की प्रतिक्रियाएं मोदी भक्तों की आयीं हैं उससे ऐसा प्रतीत तो नहीं होता कि संवेदनहीन ज़हनों पर बिहार के संवेदनशील मतदाता ने जो वोट की चोट मारी है उसका कोई असर हुआ है ?

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