केजरीवाल का प्रहार, प्रदुषण पर हथोड़े का वार !

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
……. तो जनाब मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली में खतरनाक हो रहे “प्रदुषण से निपटने ” का फार्मूला क्या बता दिया । इसपर देश भर में चर्चाएं आम हो गई।
जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई आनेI अथवा समस्या निवारण के लिए सबसे पहले अपने आत्म विश्वास को , ठोक बजाकर परखने की जरूरत पड़ती है। तत्पश्चात ही आशा रूपी घोडे पर सवार होकर उन विचारो को लागू करने की बारी आती है।
देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद
का मानना रहा कि,- “आशा उत्साह की जननी है, – आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ती है।”
महात्मा गांधी ने भी माना कि, “आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।”
शायद ऐसे ही कुछ विचारो ने आप पार्टी के कर्ताधर्ता और देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को परिस्थितियों से निपटने को अपनी जिम्मेदारी – निबाहने का हौसला दे दिया होगा। इसीकेे चलते उन्होंने सहयोगियों से चर्चा कर देश की सबसे बड़ी समस्या से निपटने का जज्बा दिखाते ” प्रदुषण मुक्त दिल्ली ” की और एक ठोस कदम बढा दिया है।
अस्पताल ,बैंक, पुलिस न्यायालय जैसे विभाग वाले आवश्यक वाहनो को छोड़कर अन्य वाहनों को उनके नम्बरों के अंतिम अंक के सम और विषम नम्बरों के आधार पर सड़क पर उतरने के दिन निश्चित कर दिये है। जैसे ही लोगो को इसकी सूचना हुई बस प्रतिक्रियाएं शुरू हो गई। चूँकि “दिल्ली किसी गैस चैम्बर से कम नहीं,” यही बात जब दिल्ली उच्च न्यायालय की खिड़कियों से भी बाहर आ चुकी है।फिर जब सभी जगह एक ही “चीख” सुनाई देती हो “प्रदुषण’- ‘प्रदुषण’ तब मुख्यमंत्री होने के नाते इन्हें कुछ तो करना ही था । सो केवल दिल्ली ही नहीं पुरे देश को एक नया रास्ता दिखा दिया है।
मेरा अपना मानना है की, परिस्थितिवश तुरंत प्रभावी कार्यवाही किये जाने का इससे अच्छा फार्मूला और अवसर कोई हो ही नहीं सकता । हो सकता है इससे नागरिकों को रोजाना की चल रही अपनी लाइफ में कुछदिन परेशानिया झेलनी पड़ जाएँ ।
वैसे देखा जाए तो, तक़रीबन ७५ से ८० – प्रतिशत निजी वाहनों में एक या दो के अलावा लोग नहीं बैठते ! जब आवाजाही के लिए लोग “पूल रीति”का प्रयोग करेंगे, तब इससे प्रदुषण तो कम हो्गा ही साथ ही तेल की खपत ही आधी कर लेंगे। यह दिल्ली में लागू होने जा रहा प्रयोग इस दिशा में रौशनी की एक नई किरण लेकर आया है। इसका विरोध नही स्वागत किया जाना चाहिए ।
बल्कि, जिस नीति से सबका भला हो राष्ट्रिय-
स्तर पर इसका समर्थन और प्रचार होने योग्य है यह नीति। इस पर कटाक्ष,चर्चाएं और विरोध से हासिल भी नही हो पायेगा कुछ ।मानते है की शुरूआती दौर में – यही सब लोगों को जरूर अटपटा लगेगा। समस्याएं आएँगी भी, चूँकि यह प्रकृति का नीयम भी है। जब कभी बदलाव की बयार आती है, तब ऐसा ही घटित होना लाजमी है। अकेले दिल्ली जैसी जगह पर ही देखें तो प्रदुषण में इजाफा करने वाले बडे ,मध्यम और लघु उद्योगों को छोड़ दें तब भी करीब ८० लाख – वाहन सड़को पर हर रोज धूंआ छोड़ते दौड रहै हैं।इनमे निजी कारें ही तक़रीबन २५-३० लाख से – ज्यादा ही आंकी गई हैं।
वाहनो के बढते प्रदुषण को नियंत्रित करने का एक और उपाय है प्रतिवर्ष वाहनों के निर्माण पर कुछ समय के लिए पाबंदी । किन्तु आम आदमी की की जरुरत और देश के विकास के मुद्दे पर सवाल ही सवाल खड़े दीखते है। अत: यह कारगर प्रतीत नहीं – होता। दूसरा पुख्ता उपाय है, 10 वर्ष से ज्यादा पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को रद्द किया जाना। यह फार्मूला विचाराधीन है।प्रदूषण के इजाफे में सबसे ज्यादा भूमिका डीजल वाले वाहनों की रहती है।ख़ास तोर पर पुराने वाहन हालांकि इन्हें प्रदुषण मुक्त का सर्टिफिकेट मिल तो जाता है।किन्तु ईमानदारी से नहीं।
आप खुद रोजमर्रा के जीवन में हर दिन- देखते है सड़कों पर दौड़लगाते टेम्पो, ऑटोरिक्शा, सिटीबसें कितना और कैसा धुआं छोड़ रहे हैं ? यह केवल राजधानी दिल्ली ही नही बल्कि देश के हर छोटेबडे़ शहरो का हाल हो गया है। और रोक लगाने वाले आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस विभाग बस हो हल्ला होने पर एक दो दिन अभियान के नाम सिर्फ चालान ही काटते मिलते है।
केजरीवाल सरकार के इस नए प्रयोग के लागू होने से,सार्वजानिक परिवहन प्रणाली में और सुधार करना होगा। इसी नए प्रावधान से जहाँ लोगो को अभी परेशानी दिख रही है, वहीँ जनाब उनकी जेब से खर्च होने वाला रुपया बचेगा। प्रदुषण घटने से लोगों की बिमारी में कमी आएगी ,वहीँ अस्पतालों का खर्च भी कम होगा । एक और बात आपके वाहनों की सार संभाल का खर्च और आप भागदौड़ में कमी महसूस करेंगे ।और तो और इस रोज की भागति दौड़ती जिंदगी में कुछ पल सुकून के इसलिए मिल जाएंगे की,
पूल किए वाहनों में बैठकर सफ़र से ,आपसी भाईचारा बढेगा घर-दफ्तर और परिवार की बातो के अलावा, – कइयो को भीड़ में वाहन चलाने का टेंशन भी लगातार घट जाएगा। सोचिए जरा आम आदमी की जिंदगी में क्या यह फायदे कमं होते हैं ? अब देखने वाली बात यह होगी की, इसी मसले पर केंद्र में मोदी जी की – भाजपा सरकार कितना सहयोग दिखाती है, तथा- अन्य राज्यो का इस फार्मूले पर कैसा बनता है,- नजरिया ? देखे कब और कैसे शुरू होता है यही नया-नया बदलाव, बहरहाल यही सब तो है जो समय गर्भ में पल रहा है… यों भी किसी ने कहा है, खामियां नहीं खूबियॉ तलाशिये । इसी से बढ जाएगी सहिष्णुता…..
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–शमेन्द्र जड़वाल,अजमेर. – 9001930401.

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