सैनिकों से ज्यादा कारोबारी साहसी होते हैं मोदी जी का यह जुमला सैनिकों की बिलखती हुयी माँओं,विधवा पत्नियों और यतीम बच्चों के सामने हमेशा एक सवाल बना रहेगा !
-आमिर अंसारी – गत दिनों सरहद पर ताज़ा मुठभेड़ में शहीद कर्नल महादिक के परिवार की आँखों के आंसू खुश्क भी नहीं हुए थे कि इन्हीं नम आँखों ने सुषमा स्वराज की पाकिस्तान में मौजूदगी के साथ ऐसा दृश्य देख लिया जिसमे उनकी संवेदनाओं पर मोदी हुकूमत ने संवेदनहीनता का जो हथोड़ा पाकिस्तान की धरती पर खड़े हो कर मारा है उसने यक़ीनन उन तमाम सैनिकों के परिवार वालों और वतनपरस्त हिन्दुस्तानियों की देश भक्ति को झिंझोड़ डाला जो मोदी हुकूमत के इन 20 महीनों में तकरीबन पाकिस्तानी सेना द्वारा तोड़े गए 900 बार के सीज़फायर से आहत थे ! और अब सोने पे सुहागा यह कि सुषमा जी ने ऐलान किया है कि जल्द ही मोदी उसी पाकिस्तान जायेंगे जहाँ बिहार के चुनाव में भाजपा नेता अपनी हार पर पटाखे फूटने की बात कह रहे थे !
ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब मोदी हुकूमत ने सैनिकों की भावनाओं को अपने पैरों से रौंदने का यह कृत्य किया हो बल्कि जिस दिन से देश में मोदी हुकूमत वजूद में आई है उस दिन से लेकर आज तक यह सरकार निरंतर मुल्क के सबसे बड़े देश प्रेमियों यानी सेना के जवानों का मनोबल गिराती जा रही है ! इस चीज़ का सबसे पहला दर्शन तब हुआ जब मोदी जी ने प्रधानमंत्री का दावेदार होते हुए 27 फरवरी 2014 को उद्योगपतियों के बीच अपना आर्थिक एजेंडा पेश करते हुए कहा था कि ” सैनिकों से ज्यादा कारोबारी साहसी होते हैं ” !
उसके बाद मोदी जी जब महान हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री की शपथ लेने जा रहे थे तब उन्होंने वह कीर्तिमान भी बना डाला जो 67 साल की आज़ादी में मुल्क के किसी प्रधानमंत्री ने नहीं बनाया था यानी कल जो मोदी पाक द्वारा हिन्दुस्तानी सैनिकों की गर्दनें काटने पर कहते थे कि जब हमारी सरकार आएगी तो हम एक के बदले दस सर लेकर आएंगे ! वोह उस समय पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर बिरयानी खिलाते हैं जब सरहदों पर पाकिस्तान गोलियों की बरसात कर रहा होता है !
वहां पाकिस्तानी सैनिक माँ भारती के सीने को छलनी कर रहे थे और यहाँ 56 इंच की छाती का नारा देने वाले मोदी जी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सत्कार में मसरूफ थे उस समय सरहद पर बंदूक थामे सैनिक की मनोदशा की कल्पना से ही मेरा रोम-रोम सिहर उठता है जिस वक़्त वह देश की रक्षा में दुश्मन की गोली अपने सीने पर खाने या फिर अपनी गोली दुश्मन के सीने में उतारने की जद्दोजहद कर रहा था ठीक ठीक उसी समय दुश्मनों का सरदार हिन्दोस्तान के दिल यानी दिल्ली में मोदी जी के मेहमान के रूप में राष्ट्रपति भवन में ब्राजमान था !
इसी शपथ समारोह में मोदी जी दूसरा ऐसा बड़ा फैसला करते हैं जो सैन्य परम्पराओं के गाल पर तमांचे से कम नहीं होता यानी मोदी जी के इसी शपथ ग्रहण समारोह में उस वी के सिंह को मंत्री मंडल में जगह दी जाती है जिसने आज़ादी के बाद पहली बार पद की लालसा में भारतीय सेना का मज़ाक सम्पूर्ण विश्व में उड़ाया था न सिर्फ इतना ही बल्कि यह वही वी के सिंह है जिसने एक फरवरी २०१३ को कारगिल युद्ध के सैनिकों की क़ुरबानी और शाहदत को नज़र अंदाज़ कर उस मुशर्रफ के साहस को साराह था जिसने कारगिल का नासूर हिन्दोस्तान को दिया था !
इसके पश्चात 26 जनवरी २०१५ का वह दिन जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं उस दिन एक बार फिर मोदी जी भारतीय सैनिकों को मनोबल को गिराते हुए उन्हें ओबामा के कुत्तों की सुरक्षा में लगा देते हैं क्या यही देश प्रेम है ?
यह सच है कि अतिथि देवो भवः हमारी संस्कृति का एक खूबसूरत भाव है लेकिन यह कैसी मेहमान नवाज़ी कि मेहमान यह कहे कि हमें आपकी सुरक्षा पर भरोसा नहीं हैं न सिर्फ इतना बल्कि मेहमान हिन्दुस्तान के वाहनों में तक में बैठने से मना कर दे जो सैनिक १२५ करोड़ हिन्दुस्तानियों की रक्षा करते हैं उनकी सलाहियत पर उनकी क़ाबलियत पर और उनकी जांबाजी पर अमरीकी प्रशासन लगातार हमले करता रहा और १२५ करोड़ गयूर हिन्दुस्तानियों का बादशाह १० लाख का सूट पहनकर अपने सगे हाथों से उन्हें चाय बनाकर पिलाता रहा – क्या मोदी जी आपको एक पल के लिए भी भारतीय जवानों के इस अपमान पर गुस्सा नहीं आया यह मैं नहीं मुल्क का बच्चा-बच्चा जानना चाहता है ?
इसके पश्चात एक बहुत पुरानी मांग OROP को लेकर पूर्व सैनिक जब संसद की चौखट यानी जंतर मंतर पर बैठ गए तो देश ने वह दर्दनाक लम्हा भी अपनी आँखों से देखा कि १५ अगस्त २०१५ को इन सैनिकों को पुलिस के ज़रिये अपमानित किया गया वह जांबाज़ जो कल तपती धूप में जैसलमेर बार्डर पर सुलगती धरती और आग बरसाते आसमान के नीचे बंदूक थामे देश की रक्षा कर रहे थे आज उन्हें बतौर इनाम पुलिस की लाठियां मिल रही थी वोह जांबाज़ सैनिक जो भूखे प्यासे कारगिल की बर्फीली पहाड़ियों पर -३० डिग्री सेल्सियस में खड़े हो कर भारत माँ की रक्षा कर रहे थे आज उन्हें मुल्क की राजधानी दिल्ली में खदेड़ा जा रहा था जो कल तक दुश्मन को खदेड़ते थे आज अपने ही मुल्क में जंतर मन्तर पर से खदेड़े जा रहे थे !
जब मुल्क के अलग अलग हिस्सों से सैनिकों पर हुई इस कार्यवाही के विरुद्ध स्वर तेज़ हुए तो आनन फानन में मोदी जी ने ओ आर ओ पी का ऐलान कर दिया लेकिन इस ऐलान में क्या खामियां होंगी यह तो वह पूर्व सैनिक ही जानें जिन्होंने अपने सीनों पर लगे तमग़ों को अपनी जांबाजी के चलते हासिल किया था लेकिन ओ आर ओ पी के खिलाफ उन्होंने इन लाक़ीमत तमग़ों की होली जलाने की कोशिश दिल्ली की सड़कों पर की है ! सैनिकों के इस विरोध प्रदर्शन के खिलाफ भी मोदी सरकार के मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जिन जुमलों का प्रयोग सैनिकों के लिए किया है वह भी शर्म का पहलू है !
इतना ही नहीं मोदी जी की सरकार जो निरंतर सैनिकों का अपमान करने पर आमादा है उसने अपना अगला कदम रक्षा में विदेशी संस्थागत निवेश को हरी झंडी देकर उठाया है यानी अब मुल्क की सुरक्षा विदेशियों के हाथों में होगी मोदी सरकार के क़दम का असर हिन्दुस्तान की सुरक्षा में कितना सही या गलत साबित होगा यह तो रक्षा विशेषज्ञ जाने लेकिन आम हिन्दुस्तानी होने के नाते और मन मस्तिष्क से स्वदेशी होने की बुनियाद पर मुझे यह फैसला सरासर गलत प्रतीत होता है !
बारहाल मोदी सरकार द्वारा सरहद पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले सैनिकों के अपमान की यह दास्तान अपना नया पड़ाव मोदी जी के तुर्की दौरे में क़ायम करती है यानी कि जिस तरह अमरीकी प्रशासन को जनवरी २०१५ में भारतीय सुरक्षा के जवानों पर भरोसा नहीं था तो उसके ठीक ११ माह पश्चात एक खबर समचार पत्रों के ज़रिये तुर्की से आती है जो यह बताती है कि हमारे जो जांबाज़ सैनिक अपने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगे हैं उनकी जांबाजी और सलाहियत पर मोदी सरकार को भरोसा नहीं है इसीलिए तुर्की दौरे पर मोदी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इज़राइली सुरक्षा एजेंसी मोसाद और एम १५ को दी गयी है !
मोदी जी आपकी सरकार के इस क़दम से मुल्क के सैनिकों के मनोबल को यक़ीनन धक्का लगा होगा और शायद आपकी इन्ही सैनिक विरोधी नीतियों के चलते दादरी में एक सैनिक के पिता की दर्दनाक बर्बरता पूर्ण ह्त्या ने सेना और सरकार के मध्य इतनी दूरी पैदा कर दी कि जिसके चलते प्रधानमंत्री द्वारा की गयी उस घोषणा को भी भारतीय सैनिकों ने नज़रअंदाज़ कर दिया जिसमे प्रधानमंत्री ने राहत कोष में सैनिकों की एक दिन की तनख्वाह जमा करने की बात कही थी !
अगर सेना और सरकार के बीच यह गतिरोध जल्द ख़त्म नहीं हुआ तो इससे देश को बड़ी हानि हो सकती है जिसे मोदी सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगी ! चूंकि हमारे पड़ोसी दुश्मन मुल्क में अस्थिरता का एक बड़ा कारण सेना और सरकार के बीच मौजूद गतिरोध भी है जिससे हमें भी सीख लेना ही होगी अंत में मैं एक राष्ट्र प्रेमी के रूप में मोदी जी से बस इतना कहना चाहता हूँ कि अपनी ज़िद और अहंकार से कम से कम भारतीय सेना को तो दूर रखिये और इस गतिरोध को जल्द से जल्द खत्म करने की जानिब क़दम बढाइये मुल्क को आपके फैसले का इंतज़ार है !
