सावधान! भाग -2

dr. ashok mittal
dr. ashok mittal
जीवन दाई औषधियां आपको मौत के मुंह में ले जा सकती हैं, फिर न मिलेगी मौत और न बचेगा जीने लायक जीवन!! भाग 2
पतला-दुबला, सुन्दर शरीर मोटा-ताजा, गोलमटोल, और बेडोल हो जाता है, मुहांसों के होने से चेहरा पे भद्दापन नज़र आने लगता है. इस सबके अलावा इस औषधि के लम्बे समय तक सेवन से होने वाले दुस्प्रभाव इतने घातक हो सकते हैं की वे कल्पना से परे हैं.
बाहर से मोटा लगने वाला शरीर अन्दर से खोखला हो जाता है, हड्डियों का कैल्शियम बाहर निकल जाने से वे कमजोर व छोटी-मोटी चोट या वजन भी सहन करने योग्य नहीं रहती, ओस्टोपोरोसिस होने से जल्दी जल्दी फ्रेक्चर हो जाते हैं, त्वचा पतली और नाजुक हो जाती है.
उल्टियां होना, पेट में अल्सर, आँतों से खून का रिसाव होने पर मल का रंग काले या कोफी के रंग हो जाता है
दिमाग में असर आने से सर दर्द, चिडचिडापन, डिप्रेशन, भुलक्कड़ पन, नींद की कमी और चक्कर आने लगते हैं.
भूखमें बढोतरी, बार बार पेशाब आना, अत्यधिक प्यास लगना, सीने में दर्द, कमजोरी, पंजे व पैरों में सूजन आ सकती हैं.
चमड़ी पे हाथ लगाने मात्र से ही वह घाव जैसी लाल व सूज जाती है, व रक्त भी आ सकता है.
इन औषधियों को जीवन रक्षक दवाओं के रूप में उपयोग में लेना होता है. इसके अलावा कुछ ख़ास गिनी चुनी व्याधियों में भी इसका उपयोग किया जाता है, इस पैमाने से नाप कर की जब इसके लम्बे समय तक लेने से होने वाले नुक्सान यदि उस बिमारी के दुश-परिणामों से कम हैं, तो दोनों में से इस दवा को चुना जाता है, क्योंकि इसके परिणाम उस बिमारी से कम घातक हैं तथा अन्य कोई दवा इस बीमारी में यहाँ असर नहीं करेगी.
बचपन में मैंने अपनी दादी को छोटे बच्चो को आधा ढक्कन ब्रांडी कभी कभार देते देखा है जब उन्हें सर्दी लग जाती थी. जो सिर्फ औषधि के रूप में ही काम में ली जाती थी. लेकिन वही ब्रांडी बार बार दी जाए, बच्चा रोये तो ब्रांडी, भूखा हो तो ब्रांडी, तो क्या होगा ?? वो कुछ पल को सो जाएगा लेकिन वो बार बार दी हुई ब्रांडी फिर औषधि नहीं ज़हर का काम करेगी. ठीक इसी प्रकार सर्दी हो, जुखाम हो, कमर दर्द हो. एडी का दर्द हो, घुटना दर्द हो, कोई भी छोटी से छोटी बिमारी में जब इन दवाओं का उपयोग होता है तो ये फिर ये जीवन रक्षक के बजाय जीवन भक्षक का रोल अदा करती हैं.
ये बात समझ से परे है की इनका उपयोग एक तो बहुत भारी मात्र में होता है, इसके दुष्परिणाम न मरीज जानता है, न डॉक्टर बताता है, न सरकार का कोई नियम क़ानून है. यूरोप में इन दवाओं के तीन सप्ताह से अधिक या डाक्टरी राय पर कम समय तक (५-७ दिन) लेकिन बार बार सेवन करने वाले मरीजों को एक कार्ड दिया जाता है. जिसमे इससे समन्धित हर तरह की जानकारी, बरतने वाली सावधानियां, कब नहीं लेनी है, आदि का जिक्र होता है. इतना ही नहीं डॉक्टर की परची का ऑडिट भी समय समय पर होता है जिसमें यदि इस तरह की दवा के अलावा एम्.आर.आई, सी.टी स्कैन आदि क्यों लिखे गए? आदि पर भी डॉक्टर से जवाब मांग लिया जाता है.
इस ब्लॉग को पड़ने के बाद डरने जैसी कोई बात नहीं है, जब जागरूकता आएगी तब इसके बेतरतीब उपयोग पर भी अंकुश लगेगा और अंततः लाभ आपके अपनों को ही मिलेगा.
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ अगले ब्लॉग में फिर मिलता हूँ.
डॉ. अशोक मित्तल

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