..मै कोई ‘बुत’ नहीं, जो देखा करुँ खामोश सा ! आप चुप हों, देश जले, और मैं कुछ ना कहूँ ?

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
……. सवाल पर ये सवाल ! सुलगते हालातों की चपेट में किसलिए आगया है मेरा भारत महान ? कुछ नागरिक अपने झुलस रहे जिलों को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। केन्द्र ने वहाँ जिलाधिकारियो से एक्शन- लेने के पावर्स निरस्त करते अब सैन्य अफसर लगाए है। पहले सेना देखती इसलिए रही कि,उसे फायरिंग के आदेश नही मिले। देश मे ही गर्माया जेएनयू मसला अभी थमा ही नही कि, हरियाणा में आरक्षण आग की लपटो ने 10 रेल स्टेशनजला डाले।तकरीबन 1000 ट्रेनें प्रभावित हो गई है। खबरों में बताया जा रहा है,- इससे रेलवे को कोई 20000 करोड़ का खामियाजे का अनुमान आँका गया है। अब तक कोई 16 जनै इस आरक्षण की भैंट चढ चुके है। कई वाहन जला- दिये गये ,घर फूँके । गन्नौर में तो अब मालगाड़ी ही फूँक दी बताई ।
हालात यह कि, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, चण्डीगढ और जम्मू कश्मीर तक आंदोलन कारियों का सबसे ताकतवर असर नजर आया है। यहँ वहाँ पटरियाँ उखाड़ फैंकी गई हैं। मुख्य नहर पर – कब्जा जमाने से दिल्ली की पानी सप्लाई का संकट गहरा रहा है।आज स्कूल बंद कर दिए तो परीक्षाएँ रद्द हो गई हैं।सरकार द्वारा तीन बार्डर सील करदेने के बावजूद दिल्ली के आस पास ही कुछ जगह जुलूस निकले तो कुछ जगह अब भी हालात नाजुक हैं। स्थानीय अधिकारी भी फायरिंग आदेश देने से बचते रहे तो सेना की 10 अतिरिक्त टुकडियाँ तैनात कर दी गई है। लोगों के जहन मे इन घटनाऔ ने, दुख ,आश्चर्य मिश्रित भय और एक असमानता का अनिश्चिता भरा भाव घर कर गया है।
. . शुरुआती दौर में हरियाणा में ही आँदोलनकारियों की सख्या कम थी, उसे सख्ती से निपटाया जा सकता था । लेकिन पुलिस चुप लगाए देखती रही। शायद निर्देश सख्ती ना करने के मिले।
और सरकारी इंटैलीजैन्स के पर्याप्त इनपुट नही थे अथवा उन्हें नकारा गया।
इधर जेएनयू मसले पर एक बहन जी अपने विचार फेसबुक पर डालते कहा है, कि, भई इस समय समुद्रमंथन का दौर चल रहा है। वहाँ काँग्रेस और वामपंथियों द्वारा पोषित बाँबियो में गर्म तेल उडेल दिया है सारा जहर बाहर आ रहा है। थोड़ा इंतजार कीजिए, फिर अमृत चखना। चलो यै तो हुई उनकी बात। लेकिन हमारे विचार से बहन.जी को अभी यह नहीं पता कि, अमृत चखने का एक और भी मतलब निकल रहा है, देश में ही। यूँ भी जेएनयू में वो कथित देशद्रोह के आरोपी लौट आए हैं , आज तो वहाँ
भाषण भी हुआ है। आरोपों पर आश्चर्य जताते वे खुद अपनी गरफ्तारी के लिए तैयार बताए हैं।
आज कहीं भी हिंसा लूटपाट आगजनी करते ,आँदोलनकारी यह समझ बैठै है कि, तोड़फोड़ और भीड़ से सब हासिल कर लिया जाएगा। बस कैसे भी हो सरकारी नौकरियो सहित ही अन्य लाभ लेने की होड़ मची हुई है। लोगों को अपनी खुदकी काबलियत पर भरोसा कम है। फिर ऊपर से भ्रष्टाचार क्या कम है? और यही सब नेताऔं की राजनैतिक चालें हैं उन्हीं को है अपनी कुर्सी की फिक्र। आगे के लिए भी सीटें सुरक्षित कर लिए जाने के उपायों मे से एक यह भी है। जैसे जातिगत व्यवस्था बनी है वैसे ही यह हथियार आजमाया जा रहा है। आमजन अभी इस बात को समझ नहीं रहे हैं।यह भी समझने का प्रयास नही करना चाहते कि आगजनी तोड़फोड़ से नुकसान देश के साथ साथ स्वयं का भी कर रहे हैं। आनैवाले दिनों में इस नुकसान वसूली के लिए जनता पर ही टैक्स का बोझ लाद दिया जाएगा । सच में लगता है , देश और आम जनता की फिक्र अब किसी नेता को नही सुहाती लगता यह.भी कि, इस देश का तो भगवान ही मालिक है। और उसी के भरोसे बस, चल रहा है ! तो कहीं दौड़ाया जा रहा है। भीड़ कही भी कुछ भी करपाने की प्रैक्टिस कर रही है। चारों तरफ यही जो दिख रहा है ?
वैसे भी लोग सरकार से तो कम लेकिन उसके सिस्टम के – शिकार ज्यादा लग रहे है।
उधर ओडिशा मे कालाबाजारी पर तंज – कसते प्रधानमंत्री जी कह रहे है, “देश में सरकार को अस्थिर और मुझे बदनाम करने की साजिश चल रही है,”। माननीय, प्रधानमंत्री जी देश की दशा और दिशा तौ आप ही को तय करनी है फुल मैजोरिटी में हो – इंतजार किसलिए कर रहैं जी ? आपके जज्बे को – सलाम । वादे तो आप पहले ही पीछे छोड़ आए हैं ? यूँ भी ऐसे बिगड़े हुए हालातों मे जनता शायद कही यह न कहने लगे कि ? ” फिक्र तो तेरी आज भी करते हैं, बस !!, जिक्र करने का हक नहीं रहा। “

error: Content is protected !!