जित्थे वसण सारे अन्ने ।
ना कोई साडी ज़ात पिछाणे,
ना कोई सानूं मन्ने ।
– बुल्ले शाह
कुछ ऐसी ही कैफियत दिल में लिये कुछ दिन पहले सोशल मीडिया को अलविदा कहा। एक सुकून का अहसास हुआ। फिर भी तनाव पैदा करने के साधन के रूप में मोबाईल और ईमेल तो बचे ही रहे । सोचा कि इन मशीनों से भी दूरी बना कर देखा जाये। आज से इसकी शुरूआत है। व्हाटसएप, टवीटर,फेसबुक,ईमेल और मोबाईल से मुक्त हो कर एक नैसर्गिक जीवन जीने का छोटा सा प्रयास !
इकतालीस बरस की यात्रा बहुत रोमांचक रही। आरएसएस से लेकर एमकेएसएस तक का सफ़र मजेदार था। कई तरह के विचारों को जानने और समझने का अवसर अनायास ही मिल पाया।
भविष्य को लेकर कोई बड़ी योजना नहीं है, बेहद छोटे छोटे अपने मनपसंद के काम करना चाहता हूं, राजनीति और एनजीओ की दुनिया से एकदम परे हो कर कुछ रचनात्मक काम, नकारात्मक और द्वेष रहित कार्य ,जो परस्पर सदभावना पैदा करे, जिससे यह दुनिया बेहतर बने और शांति ,प्रेम का वातावरण बन सके। यह विपरीत की यात्रा है, पर इसका मुसाफिर होने की तमन्ना बहुत बलवती है। सबका शुक्रिया अदा करते हुये ..
बाबा बुल्लेशाह के शब्दों को दोहराता हूं-
चल बुल्लिया,चल चल बुल्लिया…
(जिन्दगी भर औरों से मिलते रहे,इसलिये खुद से खुद की,मुलाकात ना हुई )
सबको सलाम ,नमस्ते, जय भीम ,जिन्दाबाद
अलविदा
सदैव सा
भंवर मेघवंशी