आदरणीय, चाणक्य जी , अगर आप की आत्मा यही कहीं भारतीय भूमंडल में कही डोलती फिर रही होगी तो उसको हमारी चरण वंदना के पश्चात् प्रणाम । शायद आपकी आत्मा को भारतीय उपमहाद्वीप में हो रही घटनाओ की जानकारी भी अवश्य ही हो रही होगी ऐसा मेरे सहित सभी देश वासियों का विश्वास भी है ? परंतु मुझे आप से बहुत शिकायत भी है जहाँ आपने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक साधारण से व्यक्ति चन्द्रगुप्त मौर्य को दीक्षा देकर निति और राजनीति में इतना निपुण बनाया और फिर नन्द वंश का सत्या नाश ही करा दिया यहाँ तक तो सब ठीक था क्योंकि उस समय राजा ही सर्वेसर्वा हुआ करते थे आप जैसे महान व्यक्ति राजा को ही सर्वोच्च मानते थे और राजा के लिए उच्च स्तर की राजनीति का निर्माण भी किया था आपने ? हमें तो आपकी और आपकी नीतियों की समझ केवल कूपमंडूक की भांति किताब तक ही सिमित है ? महाराज चाणक्य जी आप तो नीतिया निर्धारण करके पता नहीं कहाँ होंगे ! वैसे हमें यकीन है की आप यही कहीं भारत भूभाग में ही विराजमान होंगे ? हमारा तो अनुमान है की आप अवश्य ही नागपुर में विराजमान होंगे ? क्योंकि 10 वर्षों तक आपने और आपकी नीतियों ने 10 जनपथ में रह कर जिस प्रकार राजकाज का सञ्चालन करवाया था उसके परिणाम से देश वासी खुश नहीं थे ? शायद राजा के मंत्री आपकी भाषा ही नहीं समझ पाएं होंगे इसलिए आपने ये क्या कर डाला स्वयं राजा को ही समाप्त करवा दिया ? आप चूँकि सत्ता को दिशा देने के लिए बेताल की तरह हमेशा राजा के कंधे पर सवार रहते हो इसलिए हमारा तो अनुमान है कि आपकी आत्मा भारत से बहार जा ही नहीं सकती, अवश्य ही आपकी आत्मा इस समय नागपुर में ही विध्यमान होगी ?
इस लिए आप से निवेदन है कि आप अब अपनी मान्यताओं को कुछ विराम लगा दो क्योंकि आप की कूटनीती प्रजातंत्र या लोकतंत्र में कामयाब नहीं हो सकती यहाँ हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी है कोई भी राजा की आलोचना कर सकता है ? आपकी सोंच पर आधारित कूटनीति केवल राज्य और राजा को शक्ति शाली बनाने की रही है, उसमे प्रजा का कोई रोल ही नहीं है ? केवल मौर्यवंश को शक्तिशाली बनाने में ही आप ने अपनी सभी शक्तियों को लगा दिया था वही गलती आप आज भी नागपुर बैठ कर कर रहे हो ? यह कहाँ तक उचित हसि महाराज !
एस. पी. सिंह, मेरठ ।