राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष माननीय श्री सचिन पायलट जी अगर कुछ करने की ठान लेते हैं तो उन्हें डिगाना शायद मुमकिन नहीं होता. केंद्र में पहली बार में संचार राज्यमंत्री का कार्यभार संभालने वाले पायलट जी के सामने एक दिलचस्प वाकया तब आया जब वे अरुणाचल प्रदेश के तवांग दौरे पर थे. इस वाकये ने उन्हें नौकरशाही के दावपेच से निकलकर काम कराने का सबक भी सिखा दिया.
दरअसल, वे सीमा सुरक्षा बल के जवानों को सैटेलाइट फोन बांटने गए थे. तभी एक जवान ने उनसे सैटेलाइट फोन लेते हुए कहा, ”सर थैंक्यू वेरी मच. लेकिन यह हम लोगों को बहुत महंगा पड़ता है.” उस जवान ने जब मंत्री को बताया कि एक मिनट बात करने के 50 रु. देने पड़ते हैं तो वे चौंक उठे. उनके जेहन में सवाल उठा कि दिल्ली में बैठकर आम लोग एक मिनट के लिए चवन्नी देते हैं और 10,000 रु. महीने तनख्वाह पाने वाला सीमा पर तैनात जवान जो बर्फ में खड़े होकर गोलियां खा रहा है, उसे अपने घर बात करने के लिए 50 रु. प्रति मिनट देने पड़ रहे हैं.
दिल्ली आते ही पायलट जी ने अधिकारियों को इस दर में कटौती के आदेश दिए. लेकिन पायलट बताते हैं, ”अधिकारी फाइल को इधर-उधर घुमाते हुए नखरे दिखाने लगे. कहने लगे कि गृह मंत्रालय की अनुमति नहीं है. मैंने फौरन तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम से मिलकर लिखित मंजूरी ले ली. फिर भी दो हफ्ते हो गए, अधिकारी काम करके नहीं दे रहे थे. कभी कहते आरटीआइ लग जाएगी तो कभी संसद में सवाल उठने का डर दिखाते. हर तरह से घुमाने की कोशिश की गई, लेकिन मैंने कहा कि चाहे जो भी हो मुझे करके दो.”
पायलट जी की कोशिशों से 50 रु. की कॉल दर 50 रु. प्रति मिनट हो गई. वे कहते हैं, ”हमारे चार लाख अर्द्धसैनिक बलों के लोग हैं. इन सभी के लिए कॉल रेट 1 अप्रैल, 2011 से 5 रु. प्रति मिनट कर दिए. यह एक छोटी बात है लेकिन उस जवान को राहत मिलती होगी जो पहले घड़ी की टिक-टिक पर नजरें टिकाकर बातें करता था. अब वह 10 मिनट अतिरिक्त बात कर सकता है. इससे सरकार का नुकसान तो 50-60 करोड़ रु. सालाना है, लेकिन बीएसएनएल थोड़ा कम कमा लेगा तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”
अमूमन कुर्ता-पायजामा और सर्दियों में हाफ जैकेट पहनने वाले 36 वर्षीय पायलट का नए आइडिया को लेकर बहुत स्पष्ट सोच है. उनका मानना है, ”योजना फेल होने के डर से पहल ही नहीं करना अच्छी बात नहीं है. आपके काम से भले फायदा एक व्यक्ति को हो, लेकिन किसी का नुकसान नहीं होना चाहिए.” युवा पायलट जी को मालूम है कि सरकारी मशीनरी से कैसे काम लिया जाता है.
हालांकि वे निसंकोच मानते हैं कि शुरुआत में एक-दो बार नौकरशाही ने उन्हें भी घुमा दिया, ”हमें जनता ने चुनकर भेजा है तो हमारा काम पॉलिसी बनाना है और नौकरशाही का काम उसे लागू करना. पॉलिसी बनाने में जो नफा-नुकसान या जोखिम है वह मेरा है. राजनैतिक लोगों में इतना विवेक होना चाहिए कि कौन-सा काम कैसे होना है. अगर आपके मन में चोर नहीं है तो फिर आपको किसी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं होती.”
पायलट जी की यही सोच उन्हें अब तक के राजनैतिक करियर में बेदाग रखे हुए है…
–जितेन्द्र खींची