यह सही है,कि, भारत एक विशाल लोकतांत्रिक देश है।.दो दो हजार मील लम्बा चौड़ा देश। लेकिन, यहाँ सरकार मे रहकर जो लोग अपनी मौजमस्ती और मनमानी का आलम पाले रहते हैं, उनकी रगों में एक अलग किस्म का नशा घुल गया है!
केवल राजस्थान ही की बात करें तो, हाईकोर्ट और सदन ,दौनों पवित्र जगह सरकार 13 साल तक झूठ बोलती जरा नही हिचकिचाई। यह खुलासा कोई दर्जन भर विमंदित बच्चों की मौत को लेकर सामने आया है। विमंदित गृह मे जो बच्चे उपेक्षा और अनदेखी के.शिकार हुए उनके बारे में साफ झूठ का सहारा ले लिया गया। यही कहानी एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के मुखपृष्ठ की शोभा बन गई। उधर अफसरों को तरक्की मिलती रही,और सरकार है कि, झूठ पर झूठ गढती गई। सवाल ये है, कि, विभिन्न भाषाओं और सस्कृति वाले देश में अब किसपर – भरोसा किया जाये ?
अब तो धर्म के नाम पर जमकर राजनीति
होने लगी है। चरण छूना है, तो पहले.लिफाफा पकड़ा- ओ। दक्षिणा से लेकर आश्रमों को सुविधाए जुटती हैं।
प्रतिवर्ष होने वाले बड़े बड़े कुंभ जैसे समागमों पर संतों का अपना अहंकार, नेताओं की सांठगांठ और घुसपैठ का जरिया बन गये हैं।
.सरे आम ट्रेन और लग्जरी बसों मे शराब का अवेध कारोबार का भण्डाफोड़ होता है, तो दुसरी ओर पढने वाले होनहार आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं, तो पर्चालीक परिक्षाएं होती है, किसलिये अभिभावकों को पढा़ई के बोझ ने बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है।
इतिहास की बात करें तो राजस्थान ही में, अब किताबों से, नाथूराम गोडसे का अपराध छिपाने और स्वतंत्रता आंदोलन मे नेहरू की कर्मयात्रा को बेदखल करने का नया फरमान जारी होगया.है। लोग अचंभित है, सिवाय दाँतों तले उगली दबाने के और कर भी क्या सकते हैं। योभी लोग महंगाई की मार झेलते परेशान ही है। चंद रोज पहले सुझाव आया था, कि, चुनाव हर छह माह या साल मे हो जाएं तो नेताओं की मनमानी को करारा झटका दिया जा सकता है। मगर संभव कैसे होगा ? राजनीति होने नहीं देगी ।
करोड़ों रुपये का बजट लुटाने के बावजूद सरकार यहाँ शुद्ध पीने का पानी भी मुहैया कराने में फेल हो रही है। अनेक गाँवों मैं आज .फ्लोराईडयुक्त
पानी पीकर लोग गुजर कर रहे हैं, दूसरी ओर जल का जमीनी स्तर नीचे उतर गया है। तो कहीं सूखा है।शहरों में प्रदूषण की मारा मारी है तो कहीं अतिक्रमण की – मार। सीमाओं पर घुसपैठ है जो कभी रूक नही रही।
चीफ जस्टिस उच्चतम न्यायालय के मुताबिक, देश की अदालतो में 70 हजार जजों की जरूरत है, सरकार है की फाईलें रोके बैठी है।बंद कमरे का समाधान चाहती है। हजारों मामलों मे तारीख पर तारीख तो सैकड़ों लोग बिना फैसले के जेल की सलाखों के पीछे बैठे हर दिन जिंदगी और सरकार को कोस रहे हैं। अपराधों पर राज्य में अंकुश ही नही लग पा रहा। हर रोज चोरी, लूट, अपहरण बलात्कार और.दूर्घटनाओं वाली खबरे मन को विचलित कर डालती हैं । लगता है सरकार किसी प्राईवेट कंपनी के समान काम कर रही है ? अस्पतालों का हाल भी अच्छा कहाँ कह सकते.है । हर जगह मनमानी चल रही है धड़ल्ले से। भ्रष्टाचार भी फलफूल गया है यहीं। रोज सरकारी कारिन्दे – पकड़े भी जा रहे है, किन्तु लगता ये है कि, राज का भय कहीं खो गया है। हाँ सरकार कुछ कुछ समय बाद अफसरो को बदल जरूर रही है। मगर रिजल्ट के नाम कुछ आ क्यों.नही रहा कुछ हाथ यह तो वही जाने। कागजों में तरक्की, है जरूर।
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