टूंटी बिखरी किरचें

रश्मि जैन
रश्मि जैन
तुम कौन हो
मेरे दोस्त
मेरे हमदर्द
या कुछ और ???
कुछ ही दिन
हुए है तुमसे
मुलाकात हुए
मगर ऐसा लगता है
ना जाने कितनी
पुरानी पहचान है हमारी
आखिर क्यूँ
आखिर क्यूँ ऐसा लगने लगा
ये तो मै भी नही समझ पाई
आज तक
तुमने मुझे एक नया नाम दिया
जो मुझे बहुत अच्छा लगता है
मन झंकृत हो उठता है सुनकर
कितना प्यारा नाम है
सुनते ही दिल में तरंगे
हिलोरे लेने लगती हैँ
कई बार तुम्हारी बातों से
महसूस होता है कहीं तुम्हे
मुझसे मोहब्बत तो नही गई
तुम्हारा तो मुझे नही पता
पर
शायद
मेरी जिंदगी में तुम्हारी
एक खास जगह बन गई है
और
“आँखों से दिल में कब उतर गए पता ही न चला
खामोशी से इस दिल में बस गए पता ही न चला, क्या इसी को मोहब्बत कहते हैँ
कब बीत गए दिन रात हमे पता ही न चला”
अब वहा कोई और नही आ सकता
तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो
बिन तुम्हारे
अब कुछ अच्छा नही लगता
क्यूं सारा वक़्त
तुमसे बात करते रहना चाहती हूं
और शायद तुम भी तो
न हो तुमसे बात
तो मन बेचैन होने लगता है
क्या तुम्हें भी मेरा इंतज़ार रहता है
कई बार लगता है
कहीँ ये मेरे मन का वहम तो नही
कही मैं कोई ख्वाब
तो नही देख रही
जो एक दिन टूट जाये गा
शायद हाँ भी और ना भी
सोच कर ही डर जाती हूं
कई बार लगता है
मैं तुम्हारे बारे में
कुछ ज्यादा ही सोचने लगी हूं
कहीँ ये
सिर्फ दोस्ती ही तो नही
फिर तुरन्त एक निर्णय भी कर लेती हूं
कि अब तुमसे कोई बात नही करुँगी
कभी तो तुम्हारी बातों से
प्रेम झलकता है
तो कभी
सिर्फ दोस्ती का अहसास होता है
बड़े पशोपेश में है मन
अचानक
किसी ने जोर से मुझे
झंझोड़ दिया और
उफ्फ्फ
तो क्या मै सपना देख रही थी
जो एक झटके से टूट गया
काश ये हकीकत होती
सपने तो हम सब देखते हैँ
पर ये बहुत जल्दी
टूट भी जाते हैँ
और साथ ही दिल भी
जिसके टूटने की आवाज़
किसी को सुनाई नही देती
मगर
टूटे हुए दिल की बिखरी हुई किरचें
समेटने में सारी उम्र बीत जाती है
बहुत कठिन हो जाता है किसी
और के साथ जिंदगी बिताना
किसी अजनबी को अपना बनाना
पर शायद
ये बात
कभी कोई
समझ ही नही पाये गा……!!!!!
“मुझमे तुमसे मिलने की हसरत अभी बाकी है
दोपल गुफ़्तगु करने की तमन्ना अभी बाकी है
चन्दा और चकोरी का मिलन तो कभी हुआ ही नही
पर मुझमे तुमसे मिलने की उम्मीद अभी बाकि है”

*रश्मि डी जैन*
नयी दिल्ली

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