ईश्वर का पता

Ras Bihari Gaur (Coordinator)सब की तरह मै भी सोचता था, ” ईश्वर क्या है?” “कहाँ है?” उसका पता, ठिकाना, आदि हैं भी या नहीं? नहीं, नहीं, कोई आध्यत्मिक खोज नहीं। बस, सहज सरल सी एक अबोध मानवीय जिज्ञासा !
धार्मिक पुस्तकों, प्रवचनों,वैचारिक आख्यानों, दार्शनिक दृष्टिकोणों, मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारों से लेकर चमत्कारिक दृशाओं में सर्वत्र ईश्वर का होना बताया गया। कथा,कविता, कला में भी ईश्वर की उपस्थिति सृष्टि सृजक के रूप रेखांकित हुई। प्राकृतिक विपदाओँ, ब्रह्माण्ड के रहस्यों ,मानवीय सदाचारों में ईश्वर को एकमात्र कारक माना गया ह।
ऐसा लगता है कि ईश्वर के पते पर सबने अपने-अपने नाम की तख्तियां चस्पा कर दी है और हम भी तख्तियों को ताकत समझ कर उन्हें ईश्वर मान बैठे हैं। किसी तख्ती पर ॐ लिखा है,किसी पर अल्लाह,किसी पर क्रॉस, तो किसी पर स्वास्तिक। इन नामों को पढने के लिए अपना एक नाम भी रखना होता है। बात थोड़ी दार्शनिक जरूर है, पर है। जो सर्वत्र है, वह कैद कैसे हो सकता है। ये सारे घर सकारत्मक ऊर्जा के भंडार है, वहां ईश्वर की सघन उपस्थिति की भी अधिक सम्भावना है, बशर्ते वहीँ ऊर्जा खोज में भी हो।
ईश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, सृष्टि का नियंता,आदि- आदि बहुत कुछ माना गया है। ये सब उन तख्तियों का ही कमाल है। जो ईश्वर को विराट दिखाकर व्यापार कर रही होती हैं।
ईश्वर कभी व्यापार नहीं होता ,प्यार होता है। वह विराट नहीं, विस्तार होता है। वह डर नहीं, प्रेम होता है। वह शक्ति नहीं ,सामर्थ्य है।अवसर नहीं, आनंद होता है।आँसू में, हंसी में, विषाद में,उल्लास, आल्हाद में, चहरे के हर भावो पर अपने हस्ताक्षर छोड़ने वाला ईश्वर आपको वहां मिल जाएगा ,बस आप उससे उसकी जुबान में गुफ्तगूं करना जान जाए।
यदि हम डरकर या डराकर ईश्वर तक पहुँच रहे हैं, तो जरूर किसी न किसी तख्ती के हाथों छले जा रहे हैं। यदि हमारे मन में उसकी ताकत का भय है तो हम गलत है। ईश्वर ताकत नहीं, आनंद है। हम किसी के दुःख में व्यथित है, दर्द में छुपे पानी को पढ़ रहे है, मुस्काते पलों को जी पा रहे हैं, तो वहां ईश्वर की उपस्थिति है। ईश्वर का पता हमे हमारे आसपास बिखरे चेहरों पर लिखा मिल जाएगा । मुझे ये पता मिल गया है इसलिए अब ये सवाल बेमानी है कि मैं किस ईश्वर को मानता हूँ।
रास बिहारी गौड़ www.ajmerlit.org/blogspot.

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