ओम पुरोहितनागौर दैनिक भास्कर में पोस्टिंग के बाद वर्ष 2012 में छोटी खाटू हिंदी पुस्तकालय के साहित्यकार सम्मान समारोह को कवरेज करने का मौका मिला। उस समय साहित्य को जानने-समझने और पढ़ने की ओर अग्रसर ही हुआ था। मन में अजीब सा डर था… सोच रहा था कि बड़ा समारोह है… कैसे कवरेज करुंगा। मेरे जैसे डेस्क के आदमी के लिए इस तरह की बड़ी रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी थी। वहां सम्मानित होने वालों में एक साहित्यकार ओम पुरोहित कागद भी थे। जब उन्हें सुनने लगा… तो शायद मन के सारे डर निकल गए। ठेठ राजस्थानी भाषा का उपयोग… चूंकि मैं भी मारवाड़ी परिवार से हूं… तो मुझे सुनना अच्छा लगा। करीब चार से पांच घंटे चले इस कार्यक्रम में समय का पता ही नहीं चला… हां… इस कार्यक्रम का सुखद पहलू यह रहा कि… पुरोहित जी से मेरी फेसबुक पर दोस्ती हो गई और हम कई बार चर्चाओं में खो जाते थे। arvind apoorvaलंबी बात तो नहीं पर कभी कभार… किसी मुद्दे पर तान छिड़ ही जाती थी। शुक्रवार रात जब पता चला कि अब वो हमारे बीच नहीं रहे…. स्तब्ध रह गया। दिमाग अभी तक सुन्न है। उनके साथ बिताए पल और बातचीत हमेशा याद आती रहेगी। परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को स्वर्ग में स्थान दे। अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!