बेटियां जिन्दाबाद

ओम माथुर
ओम माथुर
साक्षी और सिँधु ने हमारे देश की उस परम्परागत सोच को भेद दिया है कि परिवार मे एक बेटा तो होना जरूरी है। जब ओलंपिक मेँ गए सभी बेटे नाकाम रहे, तब इन दो बेटियों ने रियो मे तिरंगा लहराकर देश को गौरव के क्षण दिए। अन्यथा सवा सौ करोड की आबादी वाला भारत दुनिया के सबसे बडे खेल मेले से खाली हाथ लौटता। सिँधु व साक्षी ने मैडल भी उन खेलोँ मे जीते हैं, जिनके खासा दमखम चाहिए। कुश्ती और बैडमिंटन के लिए कितनी शारीरिक उर्जा और चपलता चाहिए ये इसे खेलने और देखने वाले दोनों जानते हैं।
समाज मे आज भी उपेक्षा और शोषण का दर्द भोग रही लडकियों के लिए इन दोनों ने उम्मीद के दरवाजे खोले हैं। बेटों को ही अपना भविष्य मानने वाले और कन्या भ्रूण हत्या करने और कराने वालों के लिए अब भी सबक लेने का वक्त है कि बेटियों भी कम नहीं है और हर क्षेत्र मे कामयाबी के झँडे उन्होंने गाडे हैं। अब वो दिन गए जब बेटे बिना माँ बाप परिवार अधूरा समझते थे और एक बेटे की चाह मे कई लडकियाँ पैदा करने मे भी नहीं हिचकते थे। अगर बेटा हो गया तो बेटियां उपेक्षित जीवन जीती थी और नहीं हुआ तो माँ भी बेटियों के साथ इसका शिकार होती थी। अब तो ऐसे समझदार लोग भी हैं जिन्होंने एक बेटी को ही परिवार माना हैं। दो बेटियों के साथ तो मेरे जैसे हजारों परिवार हैं, जिन्हें बेटियों पर नाज हैं। और अब उन लोगों को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है कि बेटा नहीं हुआ, तो उनका अँतिम सँस्कार कौन करेगा। बेटियों ने ये जिम्मेदारी भी उठा ली है। इसलिए बेटियां जिन्दाबाद।

ओम माथुर,अजमेर.9351415379

error: Content is protected !!