बिना तीर्थ ही धुल गए, अपने सारे पाप ।
बेटी सावन की झड़ी, हरित धरा का गीत ।
बेटी खेतों में खड़ी, फसलों का संगीत ।
फसलों का संगीत, प्रफुल्लित कोना- कोना ।
गौरव की है बात , अरे, बेटी का होना ।
कह नटवर कविराय, सृष्टि की अनुपम कृतियाँ ।
पूछो उनका हाल, नहीं है जिनके बिटिया ।
बिन बेटी घर, घर नहीं, बेटी घर का गान ।
बेटी से पुलकित धरा, सुरभित सकल जहान ।
सुरभित सकल जहान, बेटियां केसर-चन्दन ।
आओ मिलकर करें, बेटियों का अभिनन्दन ।
कह नटवर कविराय, बेटियां सुखमय धारा ।
बेटी वह संगीत, ह्रदय झंकृत हो सारा ।
बेटी शीतल चांदनी, सूरज सा प्रकाश ।
बेटी पर्वत सी अटल, ऊँची ज्यों आकाश ।
ऊँची ज्यों आकाश, धरा सी धीरज वाली ।
बेटी की हर बात, अलग सी और निराली ।
कह नटवर कविराय, बेटियां केसर क्यारी ।
जीवन का आनंद , बेटियों की किलकारी ।
बेटी से शोभित डगर, बेटी व्रत- त्योहार ।
बेटी की पदचाप से, पुलकित आँगन-द्वार ।
पुलकित आँगन-द्वार, बेटियां कुंकुम- रोली ।
बेटी सुर-संगीत, देहरी की रंगोली ।
कह नटवर कविराय, बेटियों की ही माया ।
बेटी स्निग्ध बयार, बेटियां शीतल छाया ।
नटवर विद्यार्थी