सिद्धू का क्या होगा

ओम माथुर
ओम माथुर
वो एक कहावत है ना कि चौबे जी छब्बे बनने चले थे, दुब्बे जी बनकर लौटे। अपने नवजोत सिंह सिद्दू पर ये सटीक बैठती है। भाजपा ने राज्यसभा भेजा था। लेकिन इस बात की कसक मन मे थी कि भाजपा ने अम्रतसर से लोकसभा मे उनका टिकट काटकर अरुण जेटली को मैदान मे उतारा था। लेकिन जेटली हार गए। सिद्धू को लगा पँजाब मे उनकी लोकप्रियता बहुत है। मन मे लड्डू फूटने लगे। गुरु को लगा वो पँजाब के गुरु यानी मुख्यमंत्री बन सकते हैं। भाजपा मे दाल गल नहीं रही थी,क्योंकि भाजपा तो उस अकाली दल के साथ फिर चुनावी दाल पका रही है, जिससे सिद्धू नफरत करते हैं। इसीलिए उन्हें राज्यसभा का चुग्गा डाला था कि पँजाब से दूर रखा जाए। गुरु ने आम आदमी पार्टी से पीँगे बढाई और बताते हैं कि अरविन्द केजरीवाल से आप के सीएम उम्मीदवार बनाने का भरोसा मिलने पर एक दिन अचानक राज्यसभा और भाजपा को अँगूठा दिखा दिया।लेकिन केजरीवाल महागुरू निकले। कहे से मुकरने के लिए कुख्यात केजरीवाल ने गुरु को बाद मे ये कहकर क्लीन बोल्ड कर दिया कि उन्होंने कभी सीएम उम्मीदवारी का वादा नहीं किया था। सिद्धू राजनीति की सडक पर आ गए। काँग्रेस ने भी चारा फेँका,लेकिन पंजाब मे बंद इस मे दुकान मे जाकर क्या करते। इसलिए सीएम बनने के सपने के साथ खुद की आप यानी आवाज ए पंजाब पार्टी बना ली । भारतीय हाकी टीम के पूर्व कप्तान परगट सिंह सहित दो को और जोड़ लिया। किक्रेट कमेंटरी करते और कामेडी कार्यक्रमोँ मे बात बेबात ठहाके लगाने वाले सिद्धू शायद राजनीति को भी खेल समझने लगे हैं। समय बताएगा कि उन्हें राजनीति मे कोई मुकाम मिलता है या ये होशियारी भारी पडती हैं। क्योंकि राजनीति ,किक्रेट और कामेडी जितनी आसान नहीं है।

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