उड़ीसा राज्य के कालाहांडी जिले के भवानीपटना प्रखंड के एक गांव के दाना मांझी 23 अगस्त को अपनी पत्नी अमांग को लेकर स्थानीय सरकारी अस्पताल लेकर गए। उसी दिन रात को ही उनकी पत्नी की टीबी से मौत हो गई। उनके पास अस्पताल की एंबुलेंस के किराए के पैसे नहीं थे। कोशिशों के बाद भी वह इतने पैसे नहीं जुटा पाए कि अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर को ससम्मान घर ले जा पाते। उनका गांव वहां से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है। वह गरीब है और उनके पास वाहन का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे। इतना सब जानने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं की। एक मजबूर पति जो कर सकता था, उन्होंने वह किया। पत्नी की मौत के गम को सीने मे दबाएं माझी अपनी पत्नी के शव को कपड़े में लपटेकर पैदल ही वापस घर लौट चले। 12 किलोमीटर का वो सफर कैसा होगा, ये सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।
यह घटना यह दिखाती है कि हमारी जिंदगी से संवेदनशीलता कहीं खोकर रह गई है। अगर कोई शख्स इस तरह से 12 किलोमीटर तक अपने कंधे पर अपनी पत्नी का मुर्दा ढोये तो समझ लें कि वह अपने कंधे पर कितनी लाशें ढो रहा है। यह सिर्फ दाना मांझी की पत्नी की मौत नहीं है। यह पूरे सिस्टम की मौत है। यह लापरवाही, संवेदनहीनता और अस्पतालकर्मियों के जमीर के मर जाने की पराकाष्ठा है। बड़ी ताज्जुब की बात है जहां एक ओर हिंदुस्तान अमीर देशों की सूची में इतना ऊपर हैं, वहीं दूसरी ओर ये चेहरा। स्टार्टअप स्टैंडअप और मेक इन इंडिया के दमकते चहकते दौर में दाना मांझी जैसे कई लोग हांफते-हांफते दम तोड़ रहे हैं या तोड़ चुके हैं। मगर परवाह किसे है, कहां हैं वो लोग जो कहते हैं कि हमने देश का विकास कर दिया, और कहां है वो जो कहते हैं हम देश को बदलेंगे। आज ये तस्वीर हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। दरअसल,70 साल की आजादी के बाद भी मानवता को कलंकित करने वाली ऐसी गरीबी में जीने के लिए लोग बेबस है। ये हमारे सिस्टम के गाल पर तमाचा है।
दाना मांझी और उसकी 12 साल की बिटिया के साथ जो हुआ, उसके लिए कहीं ना कहीं हम भी गुनहगार है। ये हमारी सामाजिक उत्तरदायित्व की विफलता है। सरकार से बाद में पहले ये सोचिए कि लोग सिर्फ तमाशबीन क्यों बने हुए थे। बारह साल की उस बेटी का हृदय विदारक विलाफ को कोई देख सुन नहीं रहा था क्या। इन लोगों ने उनकी क्यों सहायता नहीं की। आज क्या 21 वीं सदी के लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं। बहरहाल, 12 किलोमीटर तक दाना मांझी अपनी बिलखती बेटी के साथ पत्नी की जिस लाश को लेकर चलते रहे वो हमारे समाज, हमारे भीतर के काफी कुछ मर जाने का संकेत बनकर हमें धिक्कारते रहेंगे।
(लेखक जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार सेवा विविधा फीचर्स के संपादक हैं)