बैठा तुम्हे पास मै निहारती रहूँ
फिर सारी कायनात भूल जाने को जी करता है
हां बाबू, आखिर तो तुमने मुझे वो ख़ुशी दे ही दी
जिसका मुझे जाने कब से था इंतज़ार
बदल डाली तुमने ज़िन्दगी मेरी
नही मालूम तुम्हें अहसास है भी कि नही
कब से तरस रही थी मै सुनने को कि तुम्हे मुझसे मोहब्बत है
बदल डाली जिंदगी मेरी तुम्हारे एक इज़हार ने
बेरंग पड़ी जिंदगी फिर से हो उठी रंगीन मेरी
कैसे कहू जीने की तमन्ना जो शनै शनै
हो चली थी मद्धम
रौशन हो उठी फिर से
कहते है न रिश्ता चाहे जो भी रहा हो
पिछले जन्म में
मिला ही देता है किसी न किसी रूप में
हमे इस जन्म में
लो आज ये पल कुछ ठहर सा गया है
जब तुमने मुझसे कहा तुम्हे मुझसे मोहब्बत है
क्या तुम्हे स्वीकार है
भला कैसे कर सकती थी मै इनकार
बोलो तो
तुमने तो मेरे दिल के जज्बातों को दे दिए अलफ़ाज़
जैसे पुरी हो गई मेरी बिन मांगे मुराद
हमारी दोस्ती ने कर लिया ये कौन सा रूप अख्तियार
कल्पना तक न की थी जिसकी मैंने
आज वो बन गई हकीकत
सचमुच तुम बहुत अच्छे हो
तुम मे पाया है मैंने एक बहुत प्यारा दोस्त
‘कैसे कर दू मै इनकार जब मुझे भी है तुमसे प्यार, प्यार, प्यार…
आये हो ज़िन्दगी में जब से मेरी आ गई है बहार, बहार, बहार’
‘बस करो एक वादा न छोड़ो गे कभी मेरा हाथ..
आखिरी साँस तक निभायेगें एक दूसरे का साथ’
‘ये वादा है हमारा न छोड़े गे कभी साथ तुम्हारा..
जो गए तुम हमे भूल कर ले आएंगे हाथ पकड़ कर तुम्हारा’
रश्मि डी जैन
महसचिव, आगमन साहित्यक संस्थान
नयी दिल्ली