मॉ की गोद में रहने वाली को मॉ -बाप ,दादा -दादी, नाना-नानी के संस्कार मिले तो दूसरी को परिवार के संस्कार नहीं मिले वरन उसे अडोस -पडोस में दिन रात टी0व्ही0 चैनलों पर विदेषी सीरियल देखने से पाष्चात्य हवा लगने लगी। धीरे – धीरे घर में रहने वाली घर में लजाने लगी तो बाहर रहने वाली सारे देष ही नही पष्चिम में भी सर उठाने लगी । अवार में घूमते -घूमते उसका आवारा होना स्वाभाविक ही था।
दोनों ही अपने अपने पालन पोषण के अनूकुल अपने -अपने क्षेत्र में उंचाईयों को छूने लगी । एक ने संस्कारों से बाहर कोई कर्म नहीं किए तो दूसरी ने बेषर्मी की हद के अन्दर कुछ कर्म नहीं किए । एक के कपड़े दिन पर दिन बढ़ते नाप से सिलते गए तो दूसरी के कपड़े दिन पर दिन उत्तरोत्तर घटते गए ।
आप जान गए होंगें ये वही बहने हैं, जिन्हे आदि काल से संस्कृति व विकृति के नाम से जाना जाता है।
हेमंत उपाध्याय, व्यंग्यकार एवं लघुकथाकार
साहित्य कुटीर, गनगौर साधना केन्द्र
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