एकाएक कालाबाज़ारियों, रिश्वतखोरों, आतंकियों, हवाला कारोबारियों सहित अन्य गौरकानूनी तरीकों से बड़ी रकम इधर उधर करने वालों या मुद्रा का दुरूपयोग करने वालों के होश फाख्ता तो हो गए। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की मध्य रात्रि 12 बजे के बाद से अचानक 500 और हजार के नोटों की कानूनी वैधता खत्म करने की घोषणा क्या की, कि चहुँ और अफरा तफरी मच गयी। चर्चा का बाज़ार गर्म है। कहीं धुंआ उठ रहा है, तो कहीं हास्य विनोद की बहार है। कोई मश्वरे दे रहा है, कोई जोक्स का आदान प्रदान कर मजे ले रहा है। मोदी समर्थक और बीजेपी के वोटर्स इतने हर्षित हैं कि बस जैसे उनके घर में ही कोई उत्सव हो। वहीं मुख्य विपक्ष कांग्रेस सहित देश भर के अन्य राष्ट्रिय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हक्के बक्के हैं। अंदर ही अंदर हड़कंप सब में है, क्योंकि हर राजनितिक पार्टी को चंदे इन्हीं दो नंबर के रुपयों में से मिलते हैं। नेता, अफसर, उद्यमी, अफसर, नौकरशाह सबकी बोलती बंद है।
हिंदुस्तान में आज जो भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा का माहौल है, उसमें सबसे ज्यादा राजिनीतिज्ञों और नेताओं के पास काला धन होने का इलज़ाम आता है, जो 99 फीसदी तो सच ही माना जा सकता है। उसके बाद नंबर आता है राष्ट्रीय और राजकीय प्रशासनिक अधिकारियों, व सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अफसरों का। सुरक्षा एजेंसियीं में सेना के अफसरों पर भी समय समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, मगर पुलिस विभाग सबसे ज्यादा बदनाम है। इस कड़ी में उसके बाद तमाम मलाईदार विभागों के तकनीकी अफसर और अन्य राजस्व अधिकारी आते हैं, जिनमें स्वायत्त शासन विभाग से जुड़े निगम, UIT, शहरी विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड, राजस्व मंडल, तहसीलदार, पटवारी, परिवहन आदि अनेक विभाग व लोग आते हैं जिनकी ऊपर की कामाइयों का अंदाजा लगाना आम आदमी की सोच से भी परे है।
मगर ये सब ही लोग बिस्तर के गद्दों, छतों की फॉल सीलिंग या बैंक के लाकर्स में छुपा कर रखे रुपयों को देख कर आज फूट फूट के रो रहे होंगे। हालांकि ये रकम इनकी ईमान की कमाई नहीं है, मगर जिस रकम से इन्हें खुद के अमीर होने का गुमान था..; जिस रकम के अपने पास होने से इन लोगों में गजब का कॉन्फिडेंस था…..; उस रकम के एकाएक यूँ रद्दी हो जाने से सदमा तो लगा ही होगा।
मगर….!!! ये “मगर” ही है जिस पर सबसे ज्यादा विचार करना होगा, क्योंकि ये ” मगर, लेकिन, किन्तु, परंतु” ही कई संशय खड़े कर रहा है। अभी मोदी और बीजेपी समर्थक अचानक हुयी इस आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक से अति उत्साहित हैं। कोई कह रहा है कि इससे दाऊद के नशे और हवाला के कारोबार की कमर टूट जायेगी। कोई कह रहा है कि इससे आतंकी संगठनों की फंडिंग बंद होते ही उनके हौसले पस्त हो जाएंगे। किसी का मानना है कि क्रिकेट में सट्टा बंद हो जाएगा, माना जा रहा है कि रिश्वतखोरी पर लगाम लगेगी, बाजार में फैले नकली नोट बेकार हो जाएंगे जो देश की अर्थ व्यवस्था को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचा रहे थे।
ये सब सकारात्मक बातें हैं और तार्किक भी हैं। यकीनन जाली नोट बेकार हो जाएंगे, यकीनन करोड़ों रूपये लिक्विड मनी के रूप में घरों में दबा कर बैठे भ्रष्टाचारी खुद को कंगाल महसूस करेंगे, यकीनन आतंक के आकाओं की आर्थिक कमर टूटेगी, यकीनन सट्टे पर भी अंकुश लगेगा….. मगर…!!!
मगर कई सवाल हैं जो आमजन को परेशान किये हुए हैं। देश की जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा तो ये आमजन ही है, जो ख़ास लोगों की कारगुज़ारियों का खामियाजा भुगतता है। उस आमजन का क्या..? उस आम आदमी के संशय, असमंजस, उलझन, डर, परेशानियों, सवालों का क्या?
०) क्या सच में भ्रष्टाचार ख़त्म हो जायेगा????
लगता तो नहीं। जिन रिश्वतखोरों के लाखों करोड़ों रुपए यूँ पल में मात्र कागज के टुकड़े रह गए, वो उसकी रिकवरी करने के लिए जान लगा देंगे। ऊपर जिन दागदार विभागों, अधिकारियों व अन्य लोगों का ज़िक्र किया, वे सब अपनी इस डूबी रकम की रिकवरी के लिए अपनी रिश्वत की बोली दुगनी नहीं कर देंगे, इसकी क्या गारंटी है?? जो फाइल पहले दस हजार की रिश्वत में पास होती थी, अब उसके लिये बीस हज़ार की रिश्वत माँगी जाने लगी तो????? जिस case के लिए थाने में दो चार हज़ार खिलाने पड़ते थे, उसके लिए अब दस पंद्रह हज़ार खिलाने पड़ गए तो???? कहीं एफिडेविट बनवाना है, कहीं NOC निकलवानी है, कहीं म्यूटेशन करवाना है, कहीं कोर्ट में किसी मामले में किसी की जमानत करवानी है, कहीं किसी ठेकेदार को अपने बिल पास करवाने हैं… कहीं न कहीं बहुत कुछ करवाना है, हर कहीं बहुत कुछ करवाना है जो आज तक रिश्वत के बगैर नहीं होता था, क्या वो अब रिश्वत के बगैर हो जायेगा?? यकीनन नहीं। पहले तो अब लोगों के काम लटकते रहेंगे और आम आदमी और ज्यादा परेशान होता रहेगा…, फिर भिन्नाये हुए नेता, अफसर और कर्मचारी उसी काम के लिए पहले ली जाने वाली रिश्वत राशि यानी सुविधा शुल्क से दुगने-तिगुने की मांग करेंगे। आखिर उन्हें दो नंबर की कमाई के डूबने की भरपाई भी तो करनी है। या फिर रिश्वत का स्वरूप बदल दिया जायेगा। होना वही है, जो मेज के नीचे से खिलायेगा, काम तो उसी का होगा। अभी तो काला धन एक पल में नष्ट हो गया, मगर काला धन फिर भ्रष्ट लोगों की तिजोरियों में नहीं जाएगा, इसकी अभी कोई गारंटी नहीं है।
०) महंगाई क्या कहर ढहाएगी?
गरीब की जान निकलने के पूरे आसार हैं। व्यापारी वर्ग तो धंधा ही रोकड़े में करता है। होलसेल और फुटकर व्यापार में रोज़ लाखो का नकद लेनदेन होता है। आम आदमी की रोज़मर्रा की ज़रूरतों से जुडी हर वस्तु बेचने वाले छोटे से छोटे और बड़े से बड़े व्यापारी-दुकानदार नकद में धंधा करते हैं और स्टॉक का एक बड़ा हिस्सा कई लोग बिना बिल के भी छुपा के रखते हैं। इससे कई कालाबाज़ारियों को दो नंबर की कमाई होती है,और इस जमात के भी करोड़ों रूपये अब रद्दी में बदल गए। यानी..? यानी ये कि अब उसकी रिकवरी के लिए कीमतों के बढ़ने का अंदेशा भी है। खुले तोल से बिकने वाले सामान की कीमतें अचानक बढ़ जाने का डर तो आम आदमी को है ही, अंदेशा ये भी है कि पैक्ड आइटम पर MRP से कुछ प्रतिशत की मिलने वाली छूट भी अब हाथ से जायेगी। मसलन बीकानेर की एक प्रतिष्ठित नमकीन कंपनी के उत्पाद के एक किलो का पैक जो अब तक 180 रु में मिल जाता था, जबकि प्रिंट MRP उससे कहीं अधिक 225 या 240 के आसपास है। अब हर छोटी बड़ी कंपनी के ऐसे तमाम उत्पादों के ना सिर्फ होलसेल व फुटकर दुकानदार, स्टॉकिस्ट, बल्कि स्वयं उत्पादक कंपनियां छूट देना बंद ना कर दें। आखिर नुक्सान की रिकवरी कैसे होगी। और ऐसे कंज़्यूमर प्रोडक्ट की संख्या हज़ारों में है जो किचन, बाथरूम से लेकर बैडरूम तक हर जगह काम आते हैं। जिनके दाम पहले से ही रुला रहे हैं, वो फल-सब्जियां क्या गुल खिलाएंगी, बस वक़्त ही बताएगा।
सोना वैसे ही एक रात में पांच हज़ार रुपए प्रति दस ग्राम की बढ़त बना गया, जिसके और बढ़ने की सम्भावना है। ये पहला संकेत है महंगाई के बढ़ने का। पेट्रोल मोदी सरकार के आने के बाद दो-एक बार कुछ कुछ दिनों के लिए गिरावट दर्ज करा कर राहत जरूर देता रहा, मगर आज पेट्रोल की कीमत भी मनमोहन सरकार के समय के सत्तर रूपये प्रति लीटर पर पहुँच गयी है।
500 और 1000 के नोट 8 नवंबर 2016 की मध्य रात्रि 12 बजे से अमान्य होने के बाद सरकार ने ऐलान किया था कि समस्त पेट्रोल पम्पों पर 11 नवंबर की मध्य रात्रि 12 बजे तक 500 व 1000 के पुराने नोट स्वीकार किए जाएंगे, मगर कई पेट्रोल पम्प मालिक इस सरकारी फरमान को जूती की ठोकर पर लेकर चले और पम्प ही नहीं खोला। जैसे अजमेर में महाराष्ट्र मंडल से आगे पुराने RPSC की तरफ सड़क के मोड़ का पेट्रोल पम्प। बाकी पम्प खुले रहे, मगर खुल्ले ना होने की बात कह कर पूरे 500 या 1000 का ही पेट्रोल भरने का दबाव बनाया। इनके बीच की कम-ज्यादा संख्या की कीमत का पेट्रोल-डीज़ल नहीं बेचा गया। यानी इसे काला बाज़ारी, भ्रष्टाचार के नए अध्याय की नए तरीके की शुरुआत माना जाए..?? क्योंकि पूत के पैर पालने में नज़र आने लगे हैं।
—–क्या हो फिर समाधान..??
लंबे चिंतन का विषय है। हाँ एक सुझाव जो समझ आता है, और महत्वपूर्ण भी लगता है, वो ये कि रिश्वत के आरोप में पुख्ता सबूतों के साथ रंगे हाथों पकडे जाने वाले अफसरशाहों और नौकरशाहों को बहाल ना किया जाए, लंबी कानूनी प्रक्रिया की आड़ में इनके बच निकलने के रास्ते बंद हों। राजनेताओं और सियासतदानों के साथ भी भ्रष्टाचार के मामले में सामान बर्ताव हो जो एक क्लर्क या चपरासी के साथ रिश्वत लेते पकड़े जाने पर होता। यानी रिश्वतखोरों का आम और ख़ास के रूप में वर्गीकरण ख़त्म हो, त्वरित फैसला कर सख्त सजा का प्रावधान हो। साथ ही ये भी ध्यान रखा जाये कि जबरन फंसाया जा रहा कोई निर्दोष इसका शिकार ना हो जाये।
तभी इस सर्जिकल स्ट्राइक की सार्थकता है, वरना रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और काले धन को साल छह महीने से ज्यादा अंकुश लगा कर नहीं रखा जा सकेगा। नतीजा मरा हुआ आम आदमी और तड़प तड़प के मरेगा।
अमित टंडन, अजमेर

एक विचार है ये। आम जन की चिंता है। इसके परिणाम यकीनन बहुत अच्छे आएंगे, मगर आम जनता के लिए कष्टकारी परिणाम भी सामने आएंगे। उत्साह में हमें चिंताओं को नहीं भूलना चाहिए। जनसँख्या में आम गरीब आदमी की ही अधिकता है, और वही पिसता है हर फैसले के बाद। यदि उसकी चिंताओं की दूर करने का कोई उपाय मोदी जी ने पहले ही कर रखा है तो, “मन की बात” में बता कर आम आदमी के रक्तचाप को निवांत्रित करने में सहयोग दें, और यदि इस लेख में उल्लेखित संभावित आम जनसमस्याएं नज़र अंदाज़ हो गयी हैं, तो इनके समाधान की योजना भी शीघ्र बना कर घोषित की जाये।