एक थे एनआर के रेड्डी। दबंग और बेहद आनेस्ट आईपीएस। अभी राजस्थान में ही तैनात हैं। साऊथ के थे। जब कभी भी वे अपने घर जाते तो क्लॉक टावर थाना पुलिस उनके लिए ट्रेन के टिकिट का इंतजाम करती थी। पुलिस टिकिट के लिए एजेंट गुजराल को कहती थी। गुजराल टिकिट की व्यवस्था करके थाना पुलिस को दे आते थे। रेड्डी अपने परिवार सहित क्लॉक टावर थाना पहुंचते। वे सबसे पहले एक काम करते थे-पर्स निकालते, टिकट का पैसा थानेदार को देते और फिर टिकिट को हाथ लगाते। किसी थानेदार की नो सर, नो सर कहने की हिम्मत नहीं होती थी। एनआरके रेड्डी की गिनती आज भी आॅनेस्ट अफसरों में ही होती है।
जो नजीर रेड्डी ने पेश की, ऐसी सामान्यत: पेश होती नहीं है। अधिकांश अफसर इनमें एएसआई से लेकर एसपी डीआईजी और उनसे बड़े अफसर भी शामिल हैं यही कोशिश करते हैं कि सब कुछ नीचे वाला वाला जुटाकर दे। यहीं से पुलिस बेड़े में करप्शन की शुरुआत होती है। मैंने अरसे तक अपराध की रिपोर्टिंग की है। पुलिस को करीब से देखा है। ये नीचे वाले से जीमने की जो ललक है आज इस स्तर पर जा पहुंची है कि हर बड़ा इसे अपना अधिकार समझने लगा है।
आईपीएस अफसर अपने मातहत आरपीएस या इंस्पेक्टर्स को गालियों से लताड़ते हैं या नहीं इसका कोई प्रत्यक्ष उदाहरण तो मैंने देखा नहीं, लेकिन इंस्पेक्टर से लेकर हैड कांस्टेबल तक को मैंने अधीनस्थों को गालियों से लताड़ते सैंकड़ों बार देखा है। इंस्पेक्टर एसआई को, एसआई एएसआई को, एएसआई हैड कांस्टेबल को और हैड कांस्टेबल जवानों पर गालियों से पिले पड़े रहते हैं। कोई भी जवानों की तकलीफ को समझना नहीं चाहता। जवानों को खाना समय पर मिल रहा है या नहीं, अच्छा मिल रहा है या नहीं, जो डाइट तय है उसके मुताबिक मिल रहा है या नहीं। बस काम और काम। यही कारण है कि पुलिस का जवान अपना गुस्सा आम पब्लिक पर निकालता है। ऊपर वाले जब नीचे वाले को लूटने में संकोच नहीं करते तो नीचे वाला आम जनता को लूटने में कोई संकोच नहीं करता।
यह तो थी पुलिस की बात। अब बात जरा सेना की कर लें। सेना में भीषण करप्शन है। यह किसी से छिपा नहीं है। हमारी सेना का एक रिटायर्ड अफसर त्यागी पांच सौ करोड़ की रिश्वत के आरोप में अभी हाल ही में पकड़ा गया है ना। मैं बात निचले स्तर की कर रहा हूं। जवानों के कई वीडियो सोशल मीडिया में छाए हुए हैं। देश की जनता देख रही है, सुन रही है, पढ़ रही है। सेना में करप्शन का मतलब देश से गद्दारी है। राष्ट्रद्रोह है। पुलिस, सेना अनुशासित संगठन हैं। लेकिन क्या देश की सुरक्षा से बड़ा कोई भी अनुशासन हो सकता है? करप्शन हमारी सेना के प्रशासनिक ढांचे को भीतर ही भीतर दीमक की तरह चाट चुका है। मेरे अनेक रिश्तेदार सेना में हैं। बहुत से मिलने वाले सेना में हैं। कई बार चर्चा होती है। हालात चिंताजनक हैं। जवानों से बहुत बुरा नहीं तो बहुत अच्छा सुलूक भी नहीं हो रहा। सेना की कैंटीनों में आने वाला सामान कहां जाता है, सब जानते हैं। पुलिस के ढेर सारे जवान अफसरों के गुलाम बनाकर रखे हुए हैं। कोई जूता पालिश कर रहा है, कोई तो मेमसाब को शॉपिंग कराने ले जा रहा। देश भर में अंग्रेजी के नामचीन स्कूलों के बाहर रोजाना सेना और पुलिस के अफसरों की गाड़ियां खड़ी मिल जाएंगी जिनमें उनके लाडले आते जाते हैं। यह तो वो करप्शन है जो नजर आता है छिपा हुआ करप्शन बहुत चिंताजनक है। पेट्रोल डीजल से लेकर सेना के सीक्रेट तक बेचे जाने के अनेक उदाहरण अखबारों में छप चुके हैं। बावजूद इसके क्या अनुशासन के नाम पर सेना के जवानों का मुंह बंद करना देश के लिए ठीक होगा?
जवान शब्द सुनते ही हमारे जेहन में सीमा और जंग की एक छवि उभर आती है। लेकिन जवानों को दो तरफा जंग लड़नी पड़ रही है। देश की सीमा पर और सेना के भीतर। जवान तेज बहादुर ने दरअसल सेना के भीतर छिपे देश के गद्दारों के खिलाफ जंग छेड़ी है। देश भर में जवानों को ऐसे ही हालातों का सामना करना पड़ रहा है। उनमें असंतोष है। अनुशासन के नाम पराइस असंतोष को दबाने का प्रयास आत्मघाती होगा। अच्छी बात यह है कि गृह मंत्रालय ने बीएसएफ की उस रिपोर्ट को खारिज कर वास्तविक रिपोर्ट देने का आदेश दिया है जिसमें केंद्र को बताया गया कि खाना अच्छा दिया जा रहा है।