सारे रीते हैं ।
नीर ख़याली पीते-पीते ,
हम सब जीते हैं ।
अनुमानों के तीर चलाकर ,
काम बनाते हैं ।
जहाँ जरूरत है करने की ,
तब हट जाते हैं ।
टांग-खिंचाई करते-करते ,
दिन ढल जाता है ।
चिड़िया चुग गई खेत अरे फिर,
क्यों पछताता है ?
-नटवर विद्यार्थी
