जिसे तुम प्रेम कहते हो वो सिर्फ देह तक सीमित है..

रश्मि जैन
रश्मि जैन
मर्द हो न…
शायद इसीलिए
औरत के ज़ज़्बातों से
खेलना तुम्हारा शौक बन चुका है..
नही देख सकते तुम उसको
हँसते मुस्कुराते
किसी दूसरे मर्द के साथ..
नही बर्दाश्त होता तुम्हे
उसका किसी से बात भी करना
क्यों…???
क्योंकि तुम्हारी नज़र में
मर्द और औरत का
सिर्फ एक ही रिश्ता है..
दोस्ती जैसा शब्द शायद
तुम्हारी डिक्शनरी में है ही नही..
हर रिश्ते की बुनियाद विश्वाश
पर टिकी होती है..
जरा सा मुस्करा कर बात कर लेने पर
किसी भी औरत पर
चरित्रहीनता का आरोप लगा देना
कितना आसान है न
तुम्हारे लिए..
अपनी दकियानूसी सोच की
वजह से आधारहीन बाते..
जिनका कोई वजूद नही होता
आधार बना कर
अविश्वाश व्यक्त करना..
बेबुनियाद शक करना शायद
तुम्हारा स्वाभाव बन चुका है..
तुम्हारा प्रेम सिर्फ वासना से लिप्त है
जिसे तुम प्रेम कहते हो वो सिर्फ देह तक सीमित है..
एक औरत का प्रेम देह से परे होता है वो अपने प्रेम की तुलना
चाँद सितारों से नही करती..
वो सिर्फ एक प्यार भरा स्पर्श चाहती है..
आँखों पर जुम्बिश ए लब
उसे अद्भुत प्रेम का अहसास कराती है..
विश्वास प्रेम को बढ़ाता है
अविश्वाश दूरियां बढ़ाता है..
प्रेम को कहना और प्रेम को जीना
बहुत फर्क है दोनों में..
जिस दिन प्रेम को
जीना सीख जाओगे न..
उस दिन अविश्वास, द्वेष और
जलन की भावना से ऊपर उठ जाओगे…
रश्मि डी जैन
महासचिव, आगमन साहित्यक समहू
नई दिल्ली

error: Content is protected !!