जयपुर के इंद्रलोक सभागार में 31 मार्च को हुई कार्यशाला में गिरिराज सर द्वारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही गई वर्तमान में मिडिया की भूमिका पर। आज जब भी मीडिया के बात आती है तो कहा जाता है लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है मिडिया ! लेकिन क्या वाकई यह सही है ? भारत के संविधान में लोकतंत्र के तीन स्तंभो का तो ज़िक्र हुआ लेकिन कुछ मीडिया घरानों ने स्वयंभू रूप से अपने आप को चौथा स्तंभ घोषित कर दिया। लोकतंत्र जो 3 स्तंभों पर भलीभांति टिका हुआ है उसे जबरन बांस का सहारा देकर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने की कोशिश की जा रही है। क्या वाकई हम चौथे स्तंभ हैं ? मेरे ख़याल से तो बिलकुल भी नहीं। आज जबकभी भी मीडिया की बात की जाती है तो एक ट्रेंड बन गया है मिडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने का लेकिन यह कदाचित सत्य नहीं है। हम मीडियाकर्मियों का काम है आम जन की भावनाएं सरकार या लोकतंत्र के तीनों स्तंभों तक पहुँचाना या लोकतंत्र के इन स्तंभो की जो भावना है उसे आमजन तक पहुँचाना। तात्पर्य यह है कि मीडिया केवल लोकतंत्र और जनता के बीच का सेतु तो जरूर हो सकता है लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ना तो कभी था ना ही हो सकता है। हमें अपनी हद और भूमिका दोनों ही समझने की दरकार है और आमजन को भी यह बात आत्मसात करनी चाहिए। क्योंकि जिस नाव में 3 ही लोगों के बैठने की क्षमता है उसपर हम जबरन किसी चौथे को बिठाएंगे तो उस नाव के हमेशा मझधार में डूबने का खतरा रहेगा फिर हम भलेही मांझी को कोसते रहें
हनुमान तंवर
ज़ी मीडिया डीडवाना
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