तारकेश कुमार ओझा
इसे जनसाधारण की बदनसीबी कहें या निराशावाद कि खबरों की आंधी में उड़ने वाले सूचनाओं के जो तिनके दूर से उन्हें रसगुल्ले जैसे प्रतीत होते हैं, वहीं नजदीक आने पर गुलगुले सा बेस्वाद हो जाते हैं। मैगों मैन के पास खुश होने के हजार बहाने हो सकते हैं, लेकिन मुश्किल यह कि कुछ देर बाद ही यह बदगुमानी साबित होती है।पहली बार बैंक का एटीएम हाथ में लिया तो बताया गया कि इससे आप जब चाहे पैसे निकाल सकते हैं। लेकिन अब इस पर हर रोज नया – नया फरमान सुनने को मिल रहा है… कि इतनी बार निकाला तो भरो सर्विस चार्ज। कितनी ही सरकारों के कार्यकाल में मैने सुना कि सरकार ने आयकर का दायरा बढ़ा दिया है। इससे मैं खुश हो गया कि अब शायद मुझे टैक्स के तौर उस राशि का भुगतान नहीं करना पड़ेगा, जिसे वापस पाने के लिए मुझे ढेरों पुड़ियां तलनी पड़ती है या यूं भी कह सकते हैं कि कम से कम एक जोड़ी चप्पलों की कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है। लेकिन अब तक बेवजह देने और फिर भारी जिल्लतें झेलने के बाद लेने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अनेक बार सूचना मिली कि सरकार ने रोमिंग खत्म कर दी है। लेकिन प्रदेश क्या जिले से बाहर कदम रखते ही मोबाइल सक्रीन पर संदेश आ जाता है … स्वागतम … अब आप रोमिंग पर है। कुछ दिन पहले प्रदेश से बाहर जाना हुआ तो सूबे की सीमा लांघते ही संदेश मिला .. अब आप रोमिंग पर हैं.. अब आपका नेट पैक रोमिंग के हिसाब से काटा जाएगा। सरकारी कार्य के लिए आधार कार्ड जरूरी है या नहीं, इसे लेकर इतनी तरह की सूचनाएं मिलती है व तर्क – वितर्क होते रहते हैं कि दूसरों की तरह मैं भी बुरी तरह से कंफ्यूज्ड हो चूका हूं कि हर सरकारी कार्य के लिए आधार जरूरी है या नहीं। अबलत्ता उस रोज पहले पन्ने पर छपी उस खबर से हिम्मत बंधी कि अब आपका अंगूठा ही आपका बैंक होगा। इस सुसंवाद से मैं रसगुल्ले जैसे स्वाद की अनुभूति कर ही रहा था कि फिर उस मुनादी ने जायका बिगाड़ दिया कि… फलां बैंक की ओर से खाताधारकों को सूचित किया जाता है कि अमुक तारीख तक अपना – अपना आधार कार्ड अवश्य ही बैंक में जमा करा दें, अन्यथा आपका एकाउंट लॉक हो सकता है। आधार कार्ड की असल व जेरोक्स कॉपी लेकर भागा – भागा बैंक पहुंचा तो वहां मेरे जैसे दर्जनों पहले से जमा थे। अनुभव ऐसा हुआ कि मानो हम अपराधी और सामने चेयर पर बैठे बाबू पुलिस या सीबीआई अधिकारी।इससे मुझे वह अनुभव याद गया जब मैं गुड फील करता हुआ खाता अप टू डेट कराने बैंक गया था। लेकिन खाता हाथ में लेते ही संबंधित अधिकारी मुझे खा जाने वाली नजरों से घुरने लगा।
