-बाबूलाल नागा-
पिछले तीन सालों से भारत पर काले बादल मंडराते रहे हैं। साल 2014 में, भारत की जनता ने नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में भेजा था। साल 2017 आते-आते वह पूरी तरह हक्के-बक्के और उलझन में हैं। सरकार बनाने के बाद भाजपा एवं नरेंद्र मोदी अपने वायदे को पूरी तरह भूल गए हैं और भारत की संस्थाओं, प्रतीकों एवं भाईचारे पर लगातार आघात कर रहे हैं। तीन साल पहले देश की जनता ने मोदी को प्रचंड बहुमत दिया। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं‘ जैसी मोहक मृगमरीचिका दिखाकर मोदी ने भारतीय राजनीति में इतिहास रच दिया था। यह नारा भारत देश में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। इसी नारे की फेर में पड़कर आम आदमी ने मोदी सरकार से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा रखी थीं और अब चूंकि वे उम्मीदें पूरी नहीं हुईं इसीलिए आम आदमी में एक बैचेनी सी दिखाई दे रही है। आम आदमी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। उनके लिए अच्छे दिनों का नारा महज मजाक बन कर रह गया है। जनता को बड़ी आशा थी कि वह अच्छे दिनों का लुत्फ उठाएगी पर अच्छे दिनों की आस में तीन साल यूं ही निकल गए।
तीन सालों में देश में अराजकता और भ्रम पैदा हुआ है। आज देश में भय का माहौल बना हुआ है। गौरक्षा के नाम में कथित गौरक्षकों द्वारा निर्दोष गोपालकों की निर्मम तरह से हत्या की जा रही है। लव जिहाद, एंटी रोमियो स्क्वॉड, गौरक्षा, घर वापसी, राम मंदिर और हिंदू राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे इन तीन सालों में सरकार के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से ज्यादा अहम रहे हैं। ‘सर्जिकल स्ट्राइक‘ और ‘नोटबंदी‘ जैसे दो अति नाटकीय फैसले भी हुए जिनके विस्तृत और विश्वसनीय परिणाम अब तक जनता या मीडिया के सामने नहीं आए हैं। हालांकि इन दोनों का भावनात्मक लाभ मोदी सरकार को जरूर मिला है। इन तीन वर्षों में दलित और सामाजिक रूप से पीड़ित समुदायों पर हमले बढ़े हैं। लव जिहाद, घर वापसी, बीफ जैसे मुद्दों के साथ अल्पसंख्यक और मुस्लिम निशाने पर रहे हैं। भले ही आज मोदी सरकार तीन साल का जश्न मना रही हो लेकिन इस जश्न में शामिल होने के लिए गरीब, मध्यवर्ग, किसान और अल्पसंख्यकों के पास कोई वजह नहीं है।
(लेखक पाक्षिक समाचार सेवा विविधा फीचर्स के संपादक हैं)

सटीक वर्णन किया है.