डा.जे.के.गर्ग
आये दिन समाचार पत्र में युवा विद्यार्थियों की आत्महत्याओं के दर्दनाक समाचार छपते ही रहते हैं, इनमें से अधिकांक्ष विभिन्न कोचिंग इंस्टीट्यूट से आते हैं जहाँ 17 से 20 या 21 साल के छात्र अपने पेरेंट्स के सपनों को पूरा करने के लिये 15-16 घंटें तनावयुक्त वातावरण में मन बेमन पढाई करके अपने बचपन को छोड कर अपने आप के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं | जरा सोचिये क्या आप भी उन माता पिता में शामिल हैं जो अपनी संतान पर जाने अनजाने खुद के सपनों को पूरा करने का दबाव डाल रहें हैं ? आज के प्रतिस्पर्धा के माहोल में बहुत से पेरेंट्स भी चाहतें हैं कि उनका लाडला उनकी हर बात को मानें, बच्चा भी वैसा ही सोचेँ जैसा वो लोग सोचते हैं | माता-पिता यह भी चाहते हैं कि उनकी संतान उनकी ही कार्बन कॉपी बने और उनसे भी अच्छी एवम् योग्य बने | जब आप अपने बच्चे को टोकते है, एवं कहते हैं कि तुम्हारे दोस्त अथवा पड़ोसी के पुत्र या पुत्री को तो परीक्षा में इतने अच्छे मार्क्स मिले हैं | फलां बच्चा खेल कूद, सांस्क्रतिक कार्यक्रमों में भाग भी लेता और इनाम भी जीतता है जबकि तुम्हारें पास सभी तरह की सुविधायें एवम् साधनों के होते हुए तुम्हारीं उपलब्धियों नगण्य है | सोचने की बात है कि माता-पिता का उनके लाडलों के प्रति ऐसा व्यवाहर उनके और उनके बच्चों के पारस्परिक सम्बन्धों के लिये सही एवम् उचित है ?
जरा सोचिये और चिन्तन कीजिये “क्या ऐसा कर आप अपने ही लाडले के मन में हीन् भावना तो पैदा नहीं कर रहें है ? क्या आप उसे जाने अनजाने में उनके अन्दर नकारात्मक उर्जा तथा नकारात्मक भावनओं के बीज तो नहीं बो रहें हैं ? शान्त मन से सोचिये ,मनन कीजिये, क्यों आपका बच्चा अपनी प्रतिभा के अनुरूप परिणाम नहीं दे पा रहा हैं ? इन अवसादों से निकलने का एक ही मार्ग है और वो है कि मां-बाप को अपने बच्चे को डाटने-फटकारने या बैत से पीटने अथवा गाली-गलोच करने के स्थान पर उस के साथ प्राक्रतिक या नेचुरल रूप से व्यवहार करें |
माता-पिता को चाहिये कि वे अपने लाडलों को अपना प्यार-स्नेह-ममता दें | वों जैसे भी उन्हें उसी रूप में स्वीकार करे, उन्हें प्रोह्त्सान दें, उनकी अच्छी उपलब्धीयों का उनके सामने या उनकी पीठ पीछे अपने इष्ट मित्रों को बताये, उनकी परेशानीयों को पूर्ण तनमन्यता से सुने और समझें भी | बच्चों को रचनात्मक सुझाव दें, उचित सलाह दें, उनके सलाहकार बनें, उन्हें उत्साहित कर उनका आत्मविश्वास बढायें| बच्चे के साथ शान्ती से बैठ कर खुले दिमाग से बात करें, उसकी परेशानियों को सुने-समझें, उसे से शांत वातावरण में उसकी बात, तर्क, सुने और समझे | उसे रचनात्मक सलाह या सुझाव दे, उसे प्रोत्साहित करें, उसका आत्मविश्वास बढायें तथा उससे कहें कि वो भी असीमित प्रतिभाशाली है इसलिए वो भी मेहनत करके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र खुद की सोच के अनुसार सफलता प्राप्त कर सकता है | आप उसके सलाहकार बने, उस पर अपना निर्णय नहीं थोपें और उसे अपने भले-बुरे के लिये खुद निर्णय लेने दें | अगर बच्चे की रुची साहित्य ,कला, प्रबन्धन,कोमर्स, मिडिया की तरफ है तो क्यों आप उस पर डाक्टर, इंजीनियर,प्रोफसर या आई.ऐ.एस बनने का दबाव डाल रहें है ? अच्छा तो यही है कि आप आप अपने बेटे या बेटी उनकी सोच , थिन्कीगं एप्टीटूयुड के अनुसार आगे बढ़ने के लिये कहें, उसका मार्गदर्शन करते हुये उनके प्रेरणास्रोत बनें | कुछ समय बाद आप खुद ही देखगें कि आपके बच्चे में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है, शिक्षा-अध्यन में उसका प्रदर्शन बेहतर से बेहतर हो रहा है | वो आपकी सलाह को गम्भीरता से लेकर अपने जीवन पथ पर सही दिशा में अग्रसर हो रहा है साथ ही साथ सफलता के नये आयाम स्थापित कर रहा है | वो दिन दूर नहीं जब आप भी कहने लगगें कि हमारे बच्चों पर हमें गोरव हो रहा है क्योंकि आपके बच्चें आपकी ख्याति में चार चाँद लगा रहे हैं |
अपने बच्चों का जीवन सुखमय ,सफल और खुशहाल बनाने हेतु कभी भी किसी की, किसी दूसरे से तुलना नहीं करें, डाटें-फटकारें नहीं, उसे समझायें, सलाह दें, उसे अपना निर्णय खुद लेने दें , उसकी सोच/ निर्णय का सम्मान करें | इस नीति से जहाँ आप भी खुश रहेगें और वहीं अन्य भी | यहीं से आपके पारस्परिक संबंध मधुर-खुशहाल बनने चालू हो जायेगें, आपका जीवन सही अर्थों में सार्थक, वैभवशाली,सफल बन जायेगा |आपके ऐसा करने से आपका बेटा या बेटी एक आदर्श बालक एवं युवा बनकर अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल होंगें एवं उनका मन शांत, स्थिर और उर्जावान बनेगा जिससे वे अपना हर काम पूर्ण निष्टा से कर अपने जीवन मे सफलता के नये-नये कीर्तिमान प्राप्त करेगें