जीवित फौजी का कोई मान नहीं

हेमंत उपाध्याय
रेल के आते ही सब लोग जगह के लिए डिब्बो की ओर दौड़ने लगे । आगे लगे साधारण डिब्बे में लटकने की जगह भी फुल होने से एक फौजी बिना आरक्षण टिकिट के द्वितीय श्रेणी के आरक्षण के डिब्बे में बैठ गया. क्योंकि और भी लोग उस डिब्बे में साधारण टिकिट पर बिना आरक्षण के बैठ गए थे । सब से पचास – पचास रुपए लेकर टीसी ने बर्थ साधारण टिकिट पर ही बिना रसीद दिये आलाट कर दी । फौजी से टिकिट माँगा सब की तरह उसने भी साधारण टिकिट दिखा दिया । टीसी ने कहा .. ये आरक्षित कोच है । लाओ पचास रुपए फौजी ने कहा– हम न रिश्वत लेते न देते। टीसी ने कहा- हम भी बिना लिये बर्थ तो दूर आरक्षण के डिब्बे में घूसने नहीं देते । पीछे सामान्य अनारक्षित कोच में जाओ। फौजी नहीं गया । टीसी ने एक झापड़ा रसीद कर दिया। उसके विरोध करने पर उसके साथ कोई नहीं आया ऊधर टीसी ने मोबाईल कर पुरे डिब्बे के टीसीयों को व दो आरपीएफ के जवान बुला कर गांधी जी की तरह उसका सामान प्लेट फार्म पर पटकवा दिया । यह देख एक समझदार ने उसे समझाईस दी भाई टीसी वसूल के पक्के होते हैं वे रेलवे का घाटा कर सकते हैं पर स्वयं की ऊपरी कमाई में कमी नहीं सहन करते। आपके पचास रुपये मैं दे देता हूँ। उसने कहा- मैं भी वसूल का पक्का हूँ रिश्वत नहीं लेता और नहीं दे सकता और वो सामान्य कोच की तरफ दौड़कर गया और शौचालय के पास अपनी पेटी रखकर प्लास्टिक की थैली बिछा कर सो गया । मैने सोचा जीतेजी बेचारों की कोई कदर नहीं होती।

हेमंत उपाध्याय
साहित्य कुटीर. पं. राम नारायण उपाध्याय वार्ड खण्डवा म. प्र. lekhakhemant17@gmail.com. 9425086246 7999749125 9424949839

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