कई बार सुनी -सुनाई बातें अच्छी और सच्ची लगती है किन्तु उनके प्रसारण से पूर्व हित- अहित पर विचार कर लेना भी ज़रूरी होता है । कभी – कभी आँखों देखा दृश्य और कानों सुनी बात भी सच्चाई के साथ कपट कर लेता है और हमें शर्मिंदा होना पड़ता है ।
किसी के भी प्रति अपनी धारणा बनाने से पूर्व थोड़ा और समय दो । हो सकता है आपको अपनी धारणा बदलनी पड़ जाए और आपका मन फिर उसको कचोटने लग जाए ।
समय के साथ परिभाषाएं भी बदलती रहती है अतः किसी एक परिभाषा के पिछलग्गू मत बनिए। बदलाव सृष्टि का नियम है ।
हमारी मूढ़ता ही हमें पीछे धकेलती है । नए आयाम स्वीकार कीजिए । नई पौध आपमें परिवर्तन देखने को लालायित है ।
– नटवर पारीक