जीवन की नश्वरता : एक शाश्वत सत्य

बी एल सामरा “नीलम “
आशाओं का हुआ खात्मा, दिल की तमन्ना धरी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना, यह प्यारी काया पड़ी रही ।।
करन इलाज एक राजा का, एक डॉक्टर जी तैयार हुए ।
विविध दवा औजार ले, मोटर कार सवार हुए ।
आया वक्त ,उलट गई मोटर- बक्स दवा से भरी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना, यह प्यारी काया पड़ी रही ।।
जेंटलमैन एक घूमन को, रोज शाम को जाते थे ।
चार पांच थे दोस्त साथ में- बातें बड़ी बनाते थे,
ठोकर लगी और गिरे बाबूजी, बस लगी हाथ में घड़ी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना, प्यारी काया पड़ी रही ।।
एक शाहजी बैठे दुकान पर- जमा खर्च खुद तोड़ रहे,
कितना लेना कितना देना, बड़े गौर से जोड़ रहे ।
कालबली की लगी चोट तो, कलम कान पर लगी रही,
बस परदेसी हुआ रवाना, प्यारी काया पड़ी रही ।।
एक बैरिस्टर दफ्तर में बैठे, सोच रहे थे अपने दिल ,
फलां दफ़ा की बहस करूंगा, पॉइंट मेरा बड़ा प्रबल ।
इधर कटा वारंट मौत का, कल की पेशी पड़ी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना , प्यारी काया पड़ी रही ।।
एक पंडित जी पत्री लेकर- गणित हिसाब लगाते थे,
देशकाल तेजी मंदी का, होनहार बतलाते थे ।
मौत की शहजादी आई तो, पल भर में पत्री कर में धरी रही,
बस परदेसी हुआ रवाना, यह प्यारी काया पड़ी रही।
क्या-क्या बयान करूं मैं, इस दुनिया की अजब गति है ।
मुसाफिर है सभी, जाना सबको, फर्क नहीं इसमें एक रत्ती है ।
मुद्दे की बात मै आज बताऊं, सुखी जीवन का सार समझाऊं । थोड़ा-थोड़ा गर रोज बचा लो, अपना जीवन बीमा करवा लो ,
चिंता बुढ़ापेे की मिट जाये , और परिवार को मिले सहारा ।
मृत्यु कभी भी आ जाए , अपना पहले जीवन संवारो ।।
जब आए संतोष धन तो, फिर किस बात की कमी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना , प्यारी काया पड़ी रही ।
आशाओं का हुआ खात्मा , दिल की तमन्ना धरी रही ।
बस परदेसी हुआ रवाना , यह प्यारी काया पड़ी रही ।।

*बी.एल. सामरा ‘नीलम*
निवृतमान शाखा प्रबंधक,
भारतीय जीवन बीमा, निगम मंडल कार्यालय, अजमेर

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