*आत्म-मंथन*

नटवर विद्यार्थी
थोड़ी दृष्टि घुमाकर देखो ,
महाशक्तियां घबराई है ।
मर्यादा का पाठ पढ़ाने ,
रामायण घर-घर आई है।

सोचो, क्यों इंसान क़ैद में ,
पशु-पक्षी आज़ाद विचरते ।
मुँह पर पट्टी बाँध आज हम ,
क्यों बैठे हैं डरते- डरते ?

प्रकृति का है कहर बड़ा यह ,
अब तक मानव समझ न पाया ।
मूक प्राणियों को दुष्टों ने ,
निर्दयता से मारा – खाया ।

यही स्वाद सबको ले डूबा ,
बन बैठा वैश्विक महामारी ।
कोई तोड़ नहीं मिल पाया ,
चिंतित है मानवता सारी ।

आशाएं अब भी जिंदा है ,
शायद कोई हल मिल जाए ।
जो भी ग़लत किया है हमने ,
उसको फिर से ना दोहराएं ।

– *नटवर पारीक*, डीडवाना

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