वो देखो मेरे देश का रखवाला खड़ा है
कुछ रूप बदल सफ़ेद कोट में वो निकला है
ना फ़िक्र अपनी
बेख़ौफ़,निडर ,सीना ताने वो खड़ा है ….
हाथ में ना बंदूक़ ,ना तलवार बस
अपनी समझ ले चला है …..
कभी मार पत्थर की कभी अपशब्द वो सह रहा है ……..
कभी थूकने पे किसी के ख़ून के घुट वो पाई रहा है …….
तो कभी अश्लीलता की हदों को पर करते लोगों को झेल रहा है ………
अपने को फौलाद बना टस से मस ना हो रहा है …..
फिर भी देखो मेरे देश का रखवाला खड़ा है
सुना है कही मकान मालिक घर में ना घुसने दे रहा है ………
तो कही पड़ोसी देख दरवाज़ा बंद कर रहा है
कही चौराहे पे कोई उसकी क़ाबलियत का सबूत माँग रहा है ………
फिर भी देखो मेरे देश का रखवाला खड़ा है
ना बढ़ाओ मुश्किलें दोस्तों घरों पे बैठ जाओ
उनका भी परिवार है उसको तुम ना भुलाओ
फ़िक्र किए बिना अपनो की तुम्हें बचाने में लगा है…..
हम जी सके इसलिए अपनी जान हथेली पे ले चला है .
अम्बिका हेड़ा