औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटकर 15 मजदूर मर गए। देश में करोडों प्रवासी श्रमिक हैं। जिनके मुंह के निवाले और रहने के ठिकाने छिन गए। मजबूर और लाचार मजदूर क्या करते? पैदल ही जान हथेली पर लेकर निकल गए। जहां सडकों पर पुलिस दिखी,तो पटरियों के सा हो लिए। क्या अच्छा होता कि इन्हें घर पहुंचाने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारें ईमानदारी से उठाती और परिवहन के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराती ? मजदूरों की भीड को जबरदस्ती और बल प्रयोग से रोक पाना नामुमकिन है। जब ट्रेनें बसें दौडा ही दी है,तो तादाद भी बढा देते। अब तो सरकारें ये भी बहाना भी नहीं सकती कि पलायन से कोरोना फैलेगा। क्योंकि पलायन और कोरोना दोनों ही बढ रहा है। विदेशों से भारतीयों को लाने से पहले सरकार यहां के लोगों को तो उनके घर तक पहुंचा देते। शायद गरीब होना इनका गुनाह है। इसकी सजा इन्हें कोरोना से पहले भूख,घर वापसी का दर्द और सरकारों की उपेक्षा के रूप में मिल रही है।