संघर्ष का सम्मान लोकतंत्र की जरूरत

देश आपादा से घिरा है। अर्थव्यवस्था से लेकर आमजन की आकांक्षाओं तक सरकार हर मोर्चे पर असफल दिख रही है। मजदूरों का पलायन और उनके पाँव के छाले राजनीति के मोहरे बनकर रह गए हैं। ऐसे में *राजनैतिक आस्था से इतर एक नागरिक की हैसियत से अपने विरोध के सारे अधिकार विपक्ष को सौंप देने चाहिए ताकि सत्ता निरकुंश तानाशाह के पथ पर अग्रसर ना हो सके।*
आज जबकि सपा , बसपा, जदयू, सहित छोटी बड़ी सारी विपक्षी पार्टियां न जाने किन कारणों से अपना मौन भंग नहीं कर पा रही हैं। इन स्थितियों में राहुल गांधी की आर्थिक चेतावनियों को नजरअंदाज करना या प्रियंका गांधी बस प्रकरण को गिनती के गणित में उलझाना, संवैधानिक अधिकारों के हनन का परमिट सरकार को सौपना है। कुछेक कांग्रेस शासित प्रदेशों का हवाला भी दिया जा सकता है। यकीनन यह काम उस प्रदेश के विपक्ष को करना चाहिए और जनता को उसका सम्बल बनना चाहिए। राहुल, प्रियंका की मेधा, जन्मकुंडली, निजी जिंदगी को बाँचकर, हम न केवल अपने अज्ञानी अहंकार का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि सरकार को उसके दायित्वों से मुक्त कर एक मतदाता के रूप में अपना अपमान भी कर रहे हैं। आम चुनाव में चार साल बाकी है..। इस वक्त राहुल, प्रियंका भी अखिलेख, मायावती, तेजस्वी, अन्ना हजारे या अरविंद केजरीवाल की तरह आराम से अपने अपने खोलो में बैठ सकते थे। उनकी झोली में तो छः दशक की उपलब्धियों का लेखा जोखा भी है। पूर्वजों के संघर्ष की विरासत है। अनुभवी और वैचारिक लोगो का साथ है। प्रश्न उनके अनुयायी या प्रशंसक होने का नहीं है। संघर्ष के जज्बे का है। आप कह सकते हैं वे राजनीति कर रहे हैं। उन्हें करनी ही चाहिए यह उनका क्षेत्र है। राजनीति में दिखावे के लिए भी यदि वे आत्महत्या करते किसान या पलायन करते मजदूर के साथ खड़े हैं तो वे हमारी जगह ही खड़े हैं। दुःख में बहने वाला आँसू देखा जाता है, उसकी सच्चाई नहीं जांची जाती। किसी बूढ़े का हाथ पकड़कर सड़क पार करवाने वाले का आभार व्यक्त किया जाता है, नीयत पर शक करके उसे गाली नहीं दी जाती। हो सकता है वे संवेदनाओं का दोहन कर रहे हो, पर उनसे तो बेहतर हैं जो पीड़ा के कारण बनने के बाद भी उसका मखौल उड़ा रहे है।
यकीनन यह पोस्ट राजनैतिक है। लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने के नाते सत्ता पक्ष से सवाल करने और विपक्ष के संघर्ष में साथ रहने का मेरा संवैधानिक अधिकार आरक्षित है। राहुल ,सोनिया, प्रियंका,को देखकर आभासी सुकून मिलता है कोई दल तो है जिसके पास दिखावे के ही सही, दर्द तो है..।वरना चैनल पर आकर अपनी गरीबी दिखाकर वोट बटोरने वाले मदारी तो आते ही रहते हैं।
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*रास बिहारी गौड़*
*( विशेष नोट- असहमति स्वागत है किंतु जिनकी आँखों पर अंधभक्ति का चश्मा चढ़ा हो,कृपया पोस्ट से निश्चित दूरी बनाए रखे…। उचित लगे तो आगे शेयर कर बात को बल दे सकते हैं)*

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