राजस्थान की हृदय स्थली अजमेर ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्य़टन, तीनों, ही दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. इसको राजा अजयपाल ने बसाया था और यह उनके नवाशे पृथ्वीराज की राजधानी थी. संयोगवश मुगलों के समय से ही यहां तीन का बडा महत्व रहा है. यहां उस जमाने के तीन ऐतिहासिक स्थान मशहूर रहे है. 1.ख्वाजा मोइनुध्दीन चिश्ती की दरगाह 2.ढाई दिन का झोपडा और 3.अकबर का किला (मेगजीन). इसी अकबर के किले में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रतिनिधी सर टामस रो ने मुगल बादशाह जहांगीर से व्यापार करने की इजाजत मांगी थी. जहांगीर – शाहजंहा के समय में ही आनासागर के किनारे बारहदरी का निर्माण हुआ जिसके किनारे ख्वाहख्वाह के तीन दरवाजे बने हुए है. राजपुताना के बीचोबीच होने के बावजूद यह कभी राजा-महाराजाओं द्वारा शासित नही रहा. अंग्रेजो के जमाने में यहा रेजीडेंट हुआ करता था.
रजवाडों के समय अजमेर मेरवाडा केन्द्र शासित ईकाई थी जिसकी भौगोलिक स्थिती तिकोनी थी और तब यह अजमेर मेरवाडा कहलाता था जिसके धुर दक्षिण में टाडगढ (प्रसिध्द इतिहासकार कर्नल टॉड जिन्होंने, अनल्स एन्ड एन्टीक्यूटीस ऑफ राजस्थान नामक ईतिहास की पुस्तक लिखी है के नाम से बसाया गया) है और उत्तर में बांदरासीन्दरी तथा पश्चिम में पुष्कर के आगे बाडी घाटी है.
देश आजाद हुआ तब पहले राजपुताना और फिर राजस्थान बनने के समय इसे, केन्द्र शासित, अजमेर मेरवाडा के नाम से तीसरी श्रेणी यानि सी स्टेट में रखा गया.
दिलचस्प बात है कि पचास के दशक के समय स्कूल के भूगोल पाठ्यक्रम में अजमेर के बारे में तीसरी कक्षा में पढाया जाता था.-चौथी कक्षा में राजस्थान, पांचवी में भारत, छठी में एशिया और सातवी क्लास में यूरोप के भूगोल के बारे में पढाते थे.
इसमें तीन शहर क्रमश अजमेर, ब्यावर- पहले नया शहर के नाम से जाना जाता था. यह स्वामी कुमारानंद और मोहनलाल सुखाडिया की कर्मभूमि थी – और किशनगढ शामिल है. किशनगढ राजस्थान के प्रथम मुख्य मंत्री जय नारायण व्यास, भायाजी की कर्म भूमि थी. यहां की चित्रकला भी मशहूर थी. नसीराबाद छावनी और पुष्कर कस्बा तीर्थस्थली है. विजयनगर भी एक कस्बा है.
अजमेर के ईतिहास संबंधी अधिक जानकारी मिलती है मुरादअली की डायरी से जिसका अनुवाद फुलेरा निवासी मनसब ने किया और जो वर्षों पूर्व राजस्थान पत्रिका में क्रमश: छपा है. कर्नल टॉड और गौरी शंकर हीरा चंद ओझा की पुस्तकें तथा हरबिलास शारदा की पुस्तक अजमेर का ईतिहास भी पठनीय है.
इसके अलावा अजमेर के ही तीन बुध्दजीवियों क्रमश सर्व श्री गिरधर तेजवानी-पत्रकार और समाज सेवी- सुरेश गर्ग सेवा निवृत उच्च राजकीय अधिकारी और कंवल प्रकाश-समाजसेवी ने भी अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक लिखकर अजमेर की महिमा गाई है.
अजमेर संबंधी ऐतिहासिक जानकारी के लिए श्री नारायण सिंहजी- सेवा निवृत राजकीय अधिकारी- का योगदान भी किसी तरह कम नही है. इसके अतिरिक्त डिग्गी बाजार, ठठेरा चौक-हालफिलहाल मुंबई निवासी- श्री शिवराज जी गोयल को भी अजमेर के ईतिहास की बहुत जानकारी है जिसमें हाथी भाटा में मौजूद पत्थर के हाथी की मूर्ती आदि है. आइये सन पचास और साठ के दशक की अजमेर की कुछ और विशेषताएं देखते है.
इसके तीन ओर पहाड है. नाग पहाड, मदार पहाड और तारागढ.
यहां तीन झीलें है. आनासागर, फाईसागर और पुष्कर.
यहां से मुख्यत तीन तरफ सडकें जाती थी. जयपुर रोड,ब्यावर रोड और नसीराबाद रोड.
यहां से तीन तरफ रेल लाईनें जाती है. दिल्ली, अहमदाबाद और खंडवा.
पहले यहां तीन ही कॉलेज थे. गॉवरमेंट कॉलेज-पृथ्वीराज कॉलेज-, डीएवी कॉलेज और मेयो कॉलेज.
अजमेर शहर में तीन मुख्य व्यापारिक स्थल है. नयाबाजार, मदारगेट और केसरगंज.
अजमेर पीने के पानी के मामलें में कभी भाग्यशाली नही रहा. शहरवासियों के लिए, वर्षो पूर्व तीन जगहों से पानी आता था. गनहेडा, फाईसागर और भांवता.
शहर की तीन पहाडियों पर तीन प्रसिध्द प्राचीन मंदिर बने हुए है. चामुन्डा माता, बजरंग गढ और बाबूगढ.
अजमेर शुरू से ही आर्यसमाज का केन्द्र रहा है. पंडित जीयालाल, डी व्बाले आदि मुख्य 2 थे. यहां आर्य समाज की तीन स्कूलें चलती थी. डीएवी,विरजानंद और दयानंद आश्रम.
