*आजादी से पूर्व अजमेर*

अपनी भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक एवं धार्मिक द्रष्टि से महत्वपूर्ण अजमेर का अपना विशिष्ठ महत्व है । जिस समय जयपुर और उदयपुर का नामो-निशान तक नहीं था , उस समय भी अजमेर की ख्याति देश भर ही नहीं अपितु दुनियां में सब तरफ थी , मुगल काल में भी अकबर और जहाँगीर के समय भी अजमेर सत्ता और सल्तनत दोनों का केन्द्र था और विकसित शहर में शुमार था । ब्रिटिश काल में भी अजमेर केन्द्र शासित प्रदेश था । पूरे राजपूताने में अंग्रेजी शासन का संचालन करने के लिए वायसराय के प्रतिनिधि का मुख्यालय भी अजमेर था। अजमेर के विकास में अंग्रेजी शासन के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य यहाँ किये गये । शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बनने के साथ यहाँ रेल कारखाना भी स्थापित किया गया जिसके चलते अजमेर की प्रगति में पंख लग गए
अजमेर का गिरिजाघर आगरा गेट स्थित चर्च ब्रिटिश हुकूमत के समय अँग्रेज गवर्नर ने बनवाया था। 28 जुलाई, 1818 को जनरल डी आकटर लानी ने अजमेर अपने अधिकार में लिया और मि. विलडर को अजमेर का पहला सुपरिटेंडेंट नियुक्त किया गया था । 20 नवम्बर, 1818 को नसीराबाद में अंग्रेजी सैनिक छावनी स्थापित की गई ।
सन् 1824 में हेनरी मिडलटन, 1827 में कैविन्डस अजमेर के सुपरिटेंडेंट बना जिसने अजमेर नगर का आधुनिकीकरण किया और कैविन्डसपुरा नाम से एक बस्ती बसाई जो आज भी प्रसिद्ध है ।
सन् 1831 में मि.मूर, 1833 में मेजर स्पेरिस, सन् 1832 में अजमेर को नार्थ वेस्ट प्रोविंस में ट्रांसफर किया गया जिसका गवर्नर खुद भारत का वायसराय जनरल लार्ड विलियम बैंटिक था । उसी वर्ष में लार्ड बैंटिक अजमेर आया और इस अवसर पर आयोजित दरबार में मेवाड़ महाराणा जवानसिंह, जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह, किशनगढ़ के राजा कल्याण सिंह, कोटा के महाराव रामसिंह, टौंक का नवाब अमीर खाँ शामिल हुए।
इसी दरबार में लार्ड बैंटिक ने तारागढ़ का सामरिक महत्व खत्म करने के उद्देश्य से उसे गिराने के आदेश दिए । यह अचरज की बात है कि किसी भी राजा-महाराजाओं ने इसका विरोध नहीं किया , जबकि तारागढ़ का किला भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अनमोल धरोहर था । सच तो यही है कि यह सभी राजा-महाराजा अंग्रेजी शासन के अधीन थे और अंग्रेजों को खुश करने के प्रयास करते रहते थे ।
सन् 1833 में एडमंड स्टोन, फिर लेफ्टिनेंट मेकनाटन, 1842 में कर्नल डिक्सन अजमेर मेरवाडा का प्रशासक बना । डिक्सन ने ब्यावर नगर का बिल्कुल नया निर्माण करवाया । उसकी पद पर मृत्यु के बाद 1857 में कर्नल सदरलैंड अजमेर का गवर्नर बना ।
सन् 1857 की क्रांति में नसीराबाद छावनी में खूनी विद्रोह हुआ था तब डिप्टी कमिश्नर का नया पद सृजित करने के बाद बी पी लायड को लगाया गया । सन् 1864 में मेजर डेविडसन, 1868 में कैप्टन रैपटन की नियुक्ति हुई ।
सन् 1868 में भयंकर अकाल और बीमारी फैली यहां तक कि अजमेर और मेरवाडा क्षेत्र की जनसंख्या 25 प्रतिशत कम हो गई ।
सन् 1870 में लार्ड मेयो अजमेर आया । वर्ष 1871 में अजमेर मेरवाडा का चीफ कमिश्नर और उसके अधीन एक कमिश्नर दो असिस्टेंट कमिश्नर लगाये गये । अब अजमेर और मेरवाडा के अलग प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति होने लगी तथा 1875 में ला टाऊच ने राजस्थान में प्रथम 20 वर्षीय रेवेन्यू सेटलमेंट का काम शुरू किया ।
सन् 1924 में अजमेर मेरवाडा का एक प्रतिनिधि सैंट्रल लेजेस्लिटिव एसेंबली में भेजने की स्वीकृति दी गई और अजमेर गृह विभाग के अधीन कर दिया गया । यह भी व्यवस्था की गई कि अजमेर के लिए कमिश्नर /असिस्टेंट कमिश्नर /पुलिस सुपरिटेंडेंट युनाइटेड प्रोविंसेज सिविल सर्विस से नियुक्त किए जायेंगे । इससे पहले सैनिक अधिकारी लगाये जाते थे लेकिन अब सर्वोच्च इंडियन सिविल सर्विस से नियुक्त किए जाने वाले अफसरों में भारतीय आईसीएस शामिल हुए जो आजकल के आईएएस लेवल के होते हैं ।
सन् 1864 में अजमेर से आगरा टेलीग्राफ सेवा शुरू हुई और सन् 1875 में लोको वर्कशॉप बना एवं 01 अगस्त, 1875 को रेल्वे लाईन अजमेर तथा 14 फरवरी, 1875 को नसीराबाद पहुंची । सन् 1879 में घंटाघर या क्लाक टावर बना । रेल्वे स्टेशन के सामने एडवर्ड मेमोरियल बना जो अब होटल है । सन् 1891-92 में इंजीनियर फाॅय की देखरेख में नगर परिषद ने फाॅयसागर का निर्माण करवाया । यह बाढ़ बचाव के लिए बनाया गया था।
अंग्रेजों ने अजमेर में योजनाबद्ध तरीके से बाजार व नई-नई सड़कों का निर्माण करवाया और सबसे महत्वपूर्ण पुष्कर घाटी के अलावा जोधपुर, जयपुर जाने वाले रास्ते को पक्का बनाने का काम किया। सड़कों के किनारे बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करवाया ।
मेयो कालेज के साथ ही सोफिया कालेज, राजकीय मल्टीपरपज हायर सेकेंडरी स्कूल तोपदड़ा, राजकीय महाविद्यालय, हसबैंड मैमोरियल, विक्टोरिया हास्पिटल (जेएलएनएच), लोंगिया डिलीवरी हास्पिटल, मदार में टी बी सैनेटेरियम के साथ रविवार के दिन सामूहिक प्रार्थना के लिए गिरिजाघर बनाने के काम किये। सर्किट हाउस के अलावा अंग्रेजी स्कूलों में सोफिया, सेंट एसलेम, सेंट थामस, सेंट पाल, किंग जार्ज जैसे कई स्कूलों का निर्माण भी करवाया । अंग्रेज़ी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्राईमरी मिशनरी स्कूलों का निर्माण किया
इन स्कूलों में शिक्षित होकर निकलने वाले इंटेलीजेंट युवा सरकारी प्रशासनिक अधिकारी,डाक्टर, इंजीनियर बनते अन्यथा परीक्षा में कम परसेंटेज लाने वाले लेकिन टाईप मशीन चलाने के जानकार सरकारी दफ्तरों में कर्लक बनते। उस जमाने में मिडिल या मैट्रिक उर्तीण अंग्रेज़ी एजुकेशन प्राप्त करने से सरकारी नौकरी निश्चित रूप से मिल जाती थी ।
अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रभाव से भारतीयों की परंपरागत जीवन शैली,रीति-रिवाजों में बदलाव आता गया। पर्सनल मैटर के बहाने देशी लोगों ने मानसिक तौर पर अंग्रेज़ी तौर-तरीकों व रहन-सहन को अपना लिया था क्यों कि प्रत्येक क्षेत्र में प्रोग्रेस करने के लिये ऐसा करना जरूरी था। उस जमाने में अजमेर अंग्रेज़ी एजुकेशन और फैशन का सबसे बड़ा केंद्र था। स्वंतत्रता के इतने सालों के बाद भी अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रभाव यथावत है।
अजमेर की प्राकृतिक स्वच्छ नम जलवायु अंग्रेजी अधिकारियों को रास आती थी। अंग्रेजों द्वारा स्थापित नसीराबाद जाने वाले रास्ते में विशाल कब्रिस्तान है जहां पर अंग्रेजों के अलावा ऐंगलो इंडियन या ईसाई समुदाय के लोगों की की कब्रें बनी हुई है।
राज्य में अजमेर में सबसे ज्यादा ईसाई समुदाय के परिवार रहते हैं। किसी समय अजमेर में हिंदू धर्म के लोगों का सबसे ज़्यादा मुसलमान या ईसाई धर्म रूपांतरण का जैसे अभियान चलाया गया था। हजारों लोगों ने सरकारी सहायता व नौकरी मिलने के लालच में ईसाई बनकर धर्म परिवर्तन कर लिया। किसी ने ईसाई लड़के या लड़की से शादी कर ली तो उसे सरकारी नौकरी मिलना सुनिश्चित हो जाता था।
अंग्रेजों ने भारतीय महिलाओं से विवाह किया और पैदा होने वाली संतान ऐंग्लों इंडियन कहलाई। देश के कई बड़े शहरों दिल्ली,मुंबई, शिमला, कुमाऊं, देहरादून, नैनीताल, बैंगलोर, इलाहाबाद आदि शहरों में आज भी ऐंग्लों इंडियन रहते हैं जो अपने पूर्वज अंग्रेज द्वारा छोड़ी गई संपत्ति मकान और फार्म हाऊस के मालिक हैं।
अजमेर ऐंगलो इंडियन लोगों का सुरक्षित घर जैसा था। आज भी अजमेर ईसाई बाहुल्य है लेकिन किसी जमाने में अजमेर और मेरवाड़ा के गर्वनर, अंग्रेजों के बड़े अफसर , सैनिक अधिकारी प्रार्थना करने के लिए इसी गिरिजाघर में इकट्ठा होते थे। रविवार को यहां पर मेले जैसा माहौल हो जाता था I

आलेख प्रस्तुति सौजन्य
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व प्रबन्ध सम्पादक
कल्पतरू हिन्दी साप्ताहिक एवं मगरे की आवाज पाक्षिक पत्र

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