रजनीश रोहिल्ला।
केवल चार विधायकों की कमी के कारण राजस्थान में भाजपा का आॅपरेशन लोटस रूका पड़ा है। गहलोत और पायलट में चल रहे शह और मात के खेल में 4 विधायकों का संख्या बल ही सबसे ज्यादा ताकतवर हो चुका है। जानकारों के अनुसार भाजपा के पास केवल 4 विधायकों का समर्थन और हो जाए तो राजस्थान में भाजपा की सरकार बन सकती है। इसके लिए एक आनिवार्य शर्त यह भी हो चुकी है कि कोर्ट से पायलट खेमे को राहत मिल जाए, उनकी विधायकी बची रहे और यह खेमा यदि विधानसभा में बहुमत परीक्षण हो तो उसकी वोटिंग में भाग ले सके।
हालांकि भाजपा कह चुकी है कि वो अभी स्थितियों को देख रही है। सही समय आने पर पार्टी आगे की रणनीति बनाएगी। भाजपा के नेताओं के बयानों से साफ है कि गहलोत और पायलट के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई का राजनीतिक लाभ जरूर लेगी। अभी बीजेपी वेट एंड वाॅच की स्थिति में हैं।
चंूकि राजस्थान के सियासी घमाचान में कानूनी दांव पेच आ चुके हैं। मामला हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। इसलिए कोर्ट का फैसला अहम हो गया है।
जानकारों के अनुसार चूंकि पायलट खेमा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज चल रहा है तो माना जा रहा है कि यह 19 विधायक अशोक गहलोत सरकार के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे। उनके साथ गए 3 निर्दलीय भी गहलोत सरकार के लिए वोट नहीं करेंगे। वहीं बीजेपी 72 और उसके 3 समर्थक भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे। यह सब मिलाकर 97 विधायकों की संख्या पर पहुंच जाते हैं। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी या फिर पायलट खेमे को सिर्फ 4 निर्दलीय या अन्य विधायकों का समर्थन जुटाना जरूरी होगा।
राजस्थान के सियासी घमासान में विधायकों की संख्या बल के चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही सभी पर भारी पड़ रहे हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि कई राज्यों में बीजेपी ने कांग्रेस सरकारें गिराई हैं। गहलोत और पायलट के बीच चल रही राजनीतिक लड़ाई पर भाजपा की नजरें मजबूती से बनी हुई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम माथुर कह चुके हैं कि मौका मिलेगा तो सरकार बनाएंगे।
तथ्य यह भी है कि कई राज्यों में जनादेश नहीं होने के बाद भी वहां भाजपा की सरकारें बनी। कई जगह विवादित स्थितियों के बीच भी भाजपा के मुख्यमंत्री बन गए।
पिछले एक साल में एक के बाद एक हुए सियासी घटनाक्रमों के चलते कांग्रेस के हाथ से पहले कर्नाटक फिर मध्य प्रदेश की बहुमत वाली सरकार निकल गई।
राजस्थान में भी बड़ा सियासी संकट बना हुआ है। यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को बचाने के लिए जूझ रहे हैं। उनके समर्थन वाले सारे विधायक होटल की बाड़ेबंदी में हैं। मुख्यमंत्री का दावा है कि उनके पास पूरा बहुमत है।
सियासत की इस गणित को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी जानते हैं। यही कारण है कि उनसे जुड़े सभी विधायकों को बाड़ेबंदी में इसलिए रखा गया है कि उसमें कोई सेंध ना मार दे।
इसी खतरे को भांपते हुए गहलोत सरकार चाहती है कि जो भी बागी हो चुके हैं, उनकी विधायकी ही समाप्त हो जाए।
लेकिन अब यह इतना आसान भी नहीं रहा क्योंकि मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट चला गया है।
इधर, सुनने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री गहलोत विधानसभा का एक सत्र बुलाने की तैयारी कर रहे हैं। जिसमें जनता से जुड़ें एक या अधिक बिल हो सकते हैं। विधानसभा सत्र से पहले कांग्रेस विधायकों की बैठक भी आपेक्षित होगी। माना जा रहा है कि उसके लिए कांग्रेस एक बार फिर से अपने विधायकों को विहप जारी कर सकती है।
अब यहां एक बार फिर से कानूनी पहलू खड़ा हो जाता है। कांग्रेस कोर्ट में कह चुकी है कि पायलट सहित 18 विधायकों ने कांग्रेस को स्वत ही छोड़ दिया है।
अगर कांग्रेस ऐसा मानती है तो फिर वो किस आधार पर पायलट और उनसे जुड़े 18 विधायकोें को विहप जारी करेगी। इनमें से भी कांग्रेस ने दो विधायकों को तो प्राथमिक सदस्यता से ही निलंबित कर दिया है।
मान लिजिए कि इन स्थितियों के बावजूद भी विधानसभा सत्र से पहले कांग्रेस पायलट सहित उनसे जुड़े 18 विधायकों को विहप जारी कर दे, तो क्या पायलट खेमा विहप के खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकता। क्या कांग्रेस की ओर से जारी विहप को चैलंेज नहीं किया जा सकता।
यानि राजनीति के महासंग्राम में अभी बहुत कुछ ऐसा होना है जो कभी पहले देखा नहीं गया होगा।
सवाल यह भी उठता है कि पिछले 12 दिनों से बाड़ेबंदी में बंद कांग्रेस के विधायकों को गहलोत कितने दिन तक होटल में रख पाएंगे। भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि कोरोना के इस विकट समय में कांग्रेस से चुने हुए सभी विधायक जनता के बीच ना होकर होटल में बंद है।
भाजपा नेता बार-बार कह रहे हैं कि यह झगड़ा कांग्रेस के अंदर का झगड़ा है भाजपा को उससे कोई लेना देना नहीं है। वहीं कांग्रेस कह रही है कि भाजपा गहलोत सरकार गिराने के प्रयासों में जुटी है।