स्मार्टफोन, टूटी-फूटी बाइक और बातचीत का बेहूदा तरीका
पत्रकारिता का वर्तमान स्वरूप अत्यन्त दुःखद और शोचनीय
सरकार, समाज और प्रबुद्धवर्गीय हस्तक्षेप की नितान्त आवश्यकता
मिशन से इतर पत्रकारिता करना वर्तमान में पत्रकारों की मजबूरी
पत्रकारिता में जुड़े लोगों को विवेकशील, विद्यावान और विद्वान होना चाहिए। यदि ये गुण हैं तब पत्रकार बनने का शौक पालो, क्योंकि पत्रकारिता एक मिशन है। पत्रकार की लेखनी लोगों को दिशा प्रदान करती है……..आदि…आदि….आदि। और अन्ततः मैं स्वर्गीय डॉ. मुकुन्द देव शर्मा की परीक्षा में उत्तीर्ण वह भी अव्वल दर्जे में हो गया था। यह तो रही मेरी अपनी बात। अर्सा बीत गया, अब तो पत्रकार बिरादरी की आबादी में कई गुना बढ़ोत्तरी हो गई है। एक स्मार्टफोन, एक टूटी-फूटी मोटर बाइक और बातचीत करने का बेहूदा तरीका वर्तमान पत्रकारिता में पत्रकार कहलाने का मापदण्ड बन गया है। अब शैक्षिक योग्यता की बाध्यता नहीं रही।
भ्रष्टाचार शब्द का चालीसा रटने की आवश्यकता है। जित देखो वहाँ भ्रष्टाचार ही नजर आये और अपने आप को दूध का धुला समझने की गलती करते हुए दो-चार पंक्तियाँ किसी के पक्ष-विपक्ष में लिखकर भ्रष्टाचारी होने का आरोप लगा दो। आपकी गाड़ी चल निकलेगी। सुबह से लेकर शाम तक दो-चार राजकीय/विभागीय कार्यालयों का चक्कर लगाकर बस वहाँ की कमियाँ देखो और कार्यरत मुलाज़िमों को अपने तरीके से धौंस में ले लो…..बस काम बन गया। एक दिन का खाने-पीने का जुगाड़ हो जाता है। उसके बाद अगले दिन अगला टारगेट…………..इस तरह नित्य इस बेरोजगारी में अपनी विशिष्ट शैली से पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की पौ-बारह……।
यहाँ बता दूँ कि वर्षों पहले एक पत्रकार थे, उनके पास एक कलम और कुछ पुराने कागज तथा टूटी-फूटी मोटर साइकिल थी। वह अलख सुबह जग जाते थे मुँह में दातून डाल लेते थे, बिना शौच किये मोटर साइकिल पर किक लगाते थे। खेतों की मेड़ों से होते हुए गाँव की समिति गोदाम पर पहुँचकर मोटर साइकिल खड़ी करते थे। वहाँ कार्यरत कर्मियों से लोटे का पानी लेकर शौच जाते थे और दातून करते थे। उनसे पिण्ड छुड़ाने के लिए समिति कर्मी उन्हें रस, टोस्ट और चाय पिलाकर पैलगी करके विदा कर देते थे। इसके उपरान्त वे निकटवर्ती थाने पहुँचते थे। जहाँ थानेदार इनसे शीघ्र छुटकारा पाने हेतु थाने के दीवान से 10-20-50 रूपए जेब में डलवा देता था।
महराज जी के बाइक के पेट्रोल का पैसा मिल जाता था। बात-बात में पत्रकार डींगते थे कि आज पुलिस कप्तान से मिलकर इस थाने की तारीफ करूँगा………आदि…..आदि………आदि…। बाइक को किक मारकर उनका अगला पड़ाव खण्ड विकास कार्यालय होता था। वहाँ वीडियो और एडीओ तथा अन्य विकास कर्मी इनकी पूर्व की भाँति सुबह के नाश्ते-पानी, भोजन की व्यवस्था करते थे। इसके उपरान्त पत्रकार जो अब इस दुनिया में नहीं है वह उनसे कहते थे कि आज अभी कलेक्टर और सी.डी.ओ. से मिलकर इस ब्लाक की तारीफ करूँगा और कुछ कहना हो तो आप लोग बता दीजिए……..आदि….आदि…..आदि…..। कुल मिलाकर पूरे दिन वह इसी तरह की पत्रकारिता किया करते थे और स्वयं की पेट पूजा से लेकर घर-परिवार के लिए भी अर्थ उपार्जन कर लिया करते थे। तो यह था उनका पत्रकारिता का एक विशिष्ट अन्दाज।
आजकल हमारे यहाँ सोशल मीडिया पर ऐसे पत्रकार सक्रिय हैं जिनके चश्मे से हर कोई भ्रष्ट, दुराचारी, कदाचारी ही दिखता है। सुना था कि जिसका चश्मा जैसा होता है उसे उसी तरह सामने वाला दिखाई पड़ता है। चार दशक पहले एक नेता जी थी, शायद अब नहीं रहे। वह कथित समाज सुधारक कहलाते थे। जब भी मिलते थे, कहते थे कि उनका उद्देश्य है कि न चोरी करूँगा, न करने दूँगा। न खाऊँगा, न खाने दूँगा। बता दें कि वह राजकीय सेवा से अपनी आदत के चलते बर्खास्त कर दिये गये थे। शायद उन पर बड़े भ्रष्टाचार का आरोप लगा था।
आजकल सोशल मीडिया के ग्रुप एडमिन, रिपोर्टर्स कुछ इस तरह की हरकतें करने लगे हैं, जिनके द्वारा वायरल की गई खबरें पढ़कर सम्बन्धित के अलावा अन्य भी अपना सर पीटना शुरू कर दिये हैं। पत्रकारिता का यह स्वरूप जिसमें जबरिया और अपने तरीके से मिथ्या व अनर्गल प्रचार कर दूसरों को भ्रष्टाचारी कहा जाये इसे कब तक सहन किया जा सकता है। यदि इस तरह की पत्रकारिता पर समय रहते नियंत्रण नहीं लगा तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। सरकार, समाज और प्रबुद्धवर्गीय हस्तक्षेप की नितान्त आवश्यकता है।
बीते कुछ महीनों से हमारे यहाँ सोशल मीडिया पर सक्रिय कथित पत्रकारों द्वारा कई राजकीय विभागों व अन्य संगठनों से सम्बन्धित खबरें अपने तरीके से वायरल की जा रही हैं। जो अवश्य ही पत्रकारिता के स्तर से काफी दूर कही जायेंगी। हालांकि विभागीय भ्रष्टाचार और पुलिस प्रशासन तथा समाज के जिस तबके से सम्बन्धित खबरें वायरल की गई हैं उनसे शायद ही कोई सकारात्मक परिणाम मिल रहा हो। बावजूद इसके सोशल मीडिया के ये पत्रकार अपनी एक्टिविटी जारी रखे हुए हैं। बेसिर-पैर तथ्यों से कोसो दूर वायरल हो रही खबरें सम्बन्धित के लिए सिर दर्द तो बनती ही हैं साथ ही इन खबरों का पाठक भी सोचने पर विवश हो जाता है।
आजकल सोशल मीडिया पर जातिवाद को बढ़ावा देने वाली खबरें प्रसारित होने से पूरा समाज जातिवादी प्रदूषण से तंग आ चुका है। टिप्पणीकर्ताओं द्वारा विधवा विलाप के रूप में अपने-अपने स्वजातीयों से सम्बन्धित समाचारों को लेकर अपने-अपने तरीके से टीका-टिप्पणियाँ की जाती हैं। जिसे हर कोई सहज रूप से डाइजेस्ट नहीं कर पाता।
अभी कुछ दिन पहले कई राजकीय विभागों से सम्बन्धित खबरें सोशल मीडिया के इन दिग्गजों द्वारा अपने तरीके से लिखकर वायरल की गई थी, जिन्हें पढ़कर ऐसा नहीं लगा कि इन कथित पत्रकारों ने परिपक्व पत्रकारिता का मुज़ाहिरा पेश किया हो। इन विभागों के सम्बन्धितों से वार्ता करने पर इनका पक्ष सुनकर बड़ा दुःख एवं आश्चर्य हुआ। इन सभी ने बताया कि ये पत्रकार हजार पाँच सौ रूपए के लिए बेसिर-पैर की तथ्यहीन खबरों का प्रसारण करते हैं। और पैसा पाने के उपरान्त भी अधिक की चाहत लिये हुए उसका प्रसारण (वायरल) करते हैं।
अब क्या कहा जाये? बड़ी बेरोजगारी है। कई पत्रकारों ने कहा कि यदि वे लोग ऐसा न करें तो खाने की मोहताजी बदस्तूर बनी रहेगी। हालांकि ऐसा करने वाले इन पत्रकारों ने स्वीकारा कि उनकी छवि समाज में अच्छी नहीं है, फिर भी क्या किया जाये। पेट भरने के लिए सरकारी, विभागीय भ्रष्टाचार का कथित पर्दाफाश तो करना ही पड़ेगा। खबर का असर हो या न हो सम्बन्धित को दण्ड मिले या न मिले, लेकिन उन लोगों की जेब सम्बन्धित द्वारा भर दी जाती है। ऐसा करके हम हमारी बेरोजगारी से मुक्ति पाते हैं भले ही वह क्षणिक क्यों न हो। चतुर्थ श्रेणी से लेकर उच्च स्तर के सरकारी मुलाज़िम लाखों की पगार प्रतिमाह सैलरी के रूप में पाते हैं। ऊपर से लाखों रूपये की अतिरिक्त कमाई करते हैं। यदि इनको हमारे जैसे पत्रकार अपनी पत्रकारिता के दबाव में नहीं रखेंगे, तो उनसे धन कमाई कैसे कर पायेंगे। ये लोग इतने बड़े दानी तो हैं नहीं कि बिना मांगे ही कोई सहयोग प्रदान करें।
कुल मिलाकर पत्रकारों को बेरोजगारी से मुक्ति पाने और कथित सम्माननीय कहलाने का भी हक है। वह भी समाज के एक प्रमुख अंग हैं। उनके द्वारा की जाने वाली इस तरह की पत्रकारिता भले ही मिशन की श्रेणी में नहीं आती फिर भी चर्चाओं के गर्म बाजार में उनका नाम तो आता है। इन पत्रकारों ने माना कि इस तरह की ब्लैकमेलिंग जातिवादी पत्रकारिता करना कठिन कार्य है। इसमें जीवन का खतरा भी है लेकिन क्या किया जाये, इसके अलावा कोई चारा नहीं है। पत्रकारिता से सस्ता, आसान और कोई क्षेत्र नहीं दिखाई पड़ता, जिसे अपनाकर धनोपार्जन किया जाये।
एक पत्रकार ने कहा कि आप तो पत्रकारिता जगत के एक वरिष्ठ स्तम्भ हैं। आप बेहतर समझ सकते हैं कि हम लोगों के समक्ष कितनी बड़ी मजबूरी है। हम लोग आर्थिक रूप से तंगी झेल रहे हैं। हाँ यह बात दूसरी है कि धनोपार्जन हेतु हमारे द्वारा जो तरीका अपनाया गया है वह मिशन रूपी पत्रकारिता से भिन्न हो सकती है। हमारा कृत्य मिशन न होकर स्वहितार्थ हो सकता है, परन्तु यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि हमने जिसको लक्ष्य किया है वह भी कहीं न कहीं अपने कृत्यों से समाज के लिए दोषी हो सकता है।
डॉ0 भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/पत्रकार/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
9125977768