*अहम*

नटवर विद्यार्थी
सदा हम तो अधूरे थे ,
मग़र तुम भी अधूरे हो ।
वहम में जी रहे हो तुम ,
मानकर यह कि पूरे हो ।

ज़रा रुककर कभी सोचो ।
खड़े हो जिस जमीं पर तुम ।
सहा है दर्द नीवों ने ,
महज़ तुम तो कँगूरे हो ।

लड़ी है आज तक जितनी,
तुमने लड़ाइयाँ मुझसे ।
बड़े योद्धा समझते हो ,
असल में तो जमूरे हो ।

ज़रूरत हैं चले दोनों ,
बढ़ाए साथ कदमों को ।
अहम को त्याग देते हैं ,
तभी हर काम पूरे हो ।

– *नटवर पारीक, डीडवाना*

1 thought on “*अहम*”

  1. मेरे पास आपकी लेखनी के लिए कोई शब्द नहीं है
    आपको और आपकी लेखनी को हृदय से नमन

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