दीप बनकर जगमगाऊँ ,
शारदे ! वरदान दे दो ।
देखता हूँ इस जगत में ,
आज जो वो कल नहीं है ।
पर विपुल भंडार तेरा ,
क्षय कभी होता नहीं है ।
हर गली-घर में गुंजाऊँ ,
रोशनी का गान दे दो ।
दीप बनकर जगमगाऊँ ,
शारदे ! वरदान दे दो ।
शीश पर है हस्त तेरा ,
और कुछ भी चाहिए ना ।
वह धनी इंसान सबसे ,
पास में जिसके सदा माँ ।
जो सुषुप्तों को जगाए ,
चेतना की तान दे दो ।
दीप बनकर जगमगाऊँ ,
शारदे! वरदान दे दो ।
आस्था चुक सी गई है ,
है भ्रमित संसार सारा ।
दूर तक दिखता नहीं है ,
पार पाने का किनारा ।
इस भँवर से पार पाएँ ,
वह नया संधान दे दो ।
दीप बनकर जगमगाऊँ ,
शारदे वरदान दे दो ।
– नटवर पारीक
श्री शारदा ज्ञानपीठ, डीडवाना
9414548148