रूदन के महत्व को दर्शाने हेतु अंग्रेजी की एक कविता भी है जिसका शीर्षक है “Home They Brought Her Warrior Dead.” इस कविता में बताया गया है कि एक महिला के मृत सैनिक पति का शरीर जब उसके घर लाया जाता है तो गुमसुम हुई महिला की जान बचाने हेतु पास-पडौस की महिलाओं द्वारा किसी तरह उसे रूलाने की भरसक कोशिश की जाती है.
रोने के और भी कई तरीकें है. एक रोना होता है जिसे पंजाब में स्यापा कहते है इसके अंतर्गत किसी की मृत्यु होने पर जब निकट का कोई रिश्तेदार आसानी से रोने को तैयार नही होता तो इस काम के लिए पेशेवर महिलाओं को रोने के लिए बुलाया जाता है. वह महिलाएं बारी बारी से छाती और सिर पीटते हुए Rhythm (लय) के साथ सामुहिक स्वर में रोती है.
एक होता है दहाड मारकर रोना, जिसे कुछ लोग बुकें फाड फाडकर रोना भी कहते है. इसे दूर दूर तक आसानी से सुना जा सकता है. इसी से मिलता-जुलता होता है चीख चीखकर रोना और इसके विपरीत होता है सुबक सुबककर रोना इन सबका का अपना अपना महत्व है. इसके अतिरिक्त आजकल हास्य योग में भी एक ऐसी हंसी सिखाई जाती है जिसे रूंआनी या रोयणी हंसी कहते है. इसमें क्रिया करने वाला शख्स अगर पीठ फेरले तो आपको यह पता करना मुश्किल हो जायेगा कि गोया वह रो रहा है या हंस रहा है. दिलचस्प बात यह है कि रूदन क्लब और हास्य योग वाले दोनों ही इस पर अपना अपना दांवा ठोक रहे है कि यह हमारा Product है. देखें किस जगह जाकर इसका फैसला होता है ?
किसी समय शादी में वधु की बिदाई के समय भी रूदन की रस्म हुआ करती थी. ऐसे अवसर पर, राजस्थान में, वधु के रोते रहने के बीच उसी पक्ष की महिलाएं कोयल बाई सिद चाल्यां ? (कोयल बाई कहां जा रही हो ? )गीत गाते हुए वधु को दरवाजे तक बिदा करती थी. जब आधुनिक युग की कुछ बालाएं हंसी-खुशी के ऐसे माहौल में रोने में आनाकानी करने लगी तो कुछ समय तक गानों के कैसट से काम चलाया गया फिर एक स्थान पर तो यहां तक हुआ कि, भावी आशंका भांपकर, दुल्हन की बजाय दूल्हा खुद ही रोने लगा तो यह परिपाटी बंद होगई.
लेकिन यह भी सच है कि रोनेवालें रूदन के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते है. कहते है कि एक बार नई नवेली दुल्हन सुहागरात को आंसू बहने लगी तो उसके पति ने पूछा कि खुशी के इस मौकें पर आंसू ? तो वह बोली कि यह खुशी के आंसू है. हमारी शादी से पहले मेरे पिताजी मुझें कहते थे कि तेरे से कोई गधा भी शादी नही करेगा परन्तु आज तुमसे शादी होने पर मुझें कितनी खुशी हो रही है कह नही सकती. यह आंसू उसी के है.
इसके अतिरिक्त हास्य योग की ही तरह रूदन के भी छुपें एजेन्डें होते है. एक सरकारी महकमें में एक बडा ऑफीसर रिटायर हुआ तो एक-दो ऑफीसर फूट फूटकर रोने लगे. बाद में उनका कहना था कि अच्छा हुआ, गया. कई कथावाचक, रामायण में राम वन गमन, केवट प्रसंग तथा भागवत में कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रस्थान आदि विषयों पर कथा कहते कहते सुबकने अथवा रोने लगते है. इससे श्रोताओं और विशेषकर महिलाओं पर बहुत प्रभाव पडता है. कई लोग पकडे जाने पर पुलीस थाने में रोने लगते है, कहते है हुजूर माई-बाप है हुजूर ! ताकि मार कम पडे. अपना अपना ढंग है जिसको जो माफिक आजाय.
कई नेता पब्लिक मीटिंग में जनता की सहानुभूति लेने के लिए रोने या आंसू बहाने का सहारा लेते है. इसी समय, कोई अपनी गरीबी का बखान करने लगता है तो कोई अपने माता-पिता के बिछुडने का. कोई कोई तो उस प्रांत से अपना लगाव बताते बताते वही का धरतीपुत्र बन जाता है मसलन मैं तो हिमाचल का बेटा हूं, मेरा तो जंम ही राजस्थान के लिए हुआ है, मेरा सारा बचपन आसाम की चाय बेचते बेचते गुजरा है, मैं गुजरात की बहू हूं आदि आदि.
हो सकता है कि इसी क्रम में आगे कुछ और तरक्की हो और हमें रोने-धोने के नए नए तरीकों का पता पडे.