हम हमेशा यह कहते हंै परमात्मा ने मुझे ही दु:ख क्यों दिया है लेकिन सत्य यह भी है कि यदि वह दु:ख नहंीं देता तो शायद हमें जागने के सारे रास्ते ही बंद हो जाते तो दु:ख आता है मात्र हमारी परीक्षा के लिए लेकिन प्रत्येक दु:ख के पीछे एक सुखद अहसास अवश्य छिपा होता है। हॉं इतना अवश्य है कि वह अहसास व्यक्ति को तुरंत महसूस नहीं होता इसलिए वह दु:ख में घबरा जाता है और विचलित हो जाता है। हमें प्राय: अधिकांश दु:ख मन की आशाओं को लेकर होते है क्योंकि एक मन ही तो है जो मानव को सपनों की दुनिया में भटकाता रहता है और हम है कि उसी मन के बहकावे में आकर अपना स्वयं का सुख समाप्त कर देते हंै। वास्तव में सुख उन्हें मिलता है जो स्वयं खुश होने का अभ्यास सीख लेते है। जो कर्म के बधंनो का रोना छोड़कर सेवा धर्म को अपना लेते है। अपने भीतर के मैं को जैसे ही हम समाप्त कर लेते है तो हमारे भीतर कृतज्ञता व करूणा का नैसर्गिक भाव उतपन्न होने लगता है और हम हमारे दुखो को किसी के सेवा कर भूलना प्रारंभ कर देते है। वर्तमान समय में भी हमें अपने भीतर के आत्मविश्वास को जगाकर, मानव सेवा कार्यो में जुड़कर अपने आपको प्रसन्न रखने के प्रयास स्वयं ही प्रारंभ करने होंगे और यही से आपके जीवन के हर दिन की शुरूआत पावन पर्व से होगी। आपको महसूस होगा कि जीवन कितना आनंदित होता है।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
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