संग्रह

Dinesh Garg
जीवन भर संग्रह करना हम सभी के आदत में शुमार है जानते हुए कि अंत में कुछ साथ नहीं जाने वाला फिर भी संग्रह की प्रवृति को हम जीवन में छोड़ नहीं पाते। समय व्यतीत होता जाता है और समय गुजरने के बाद हम केवल प्रायश्चित करते रहते है। किए गए संग्रह का समय पर सदुपयोग नहीं करते । इसी बात को स्थापित करने के लिए एक संस्मरण है।
किसी परिवार में गृहप्रवेश का हवन का आयोजन किया जा रहा था। तय समय पर आचार्य ने समस्त परिजनो को यज्ञ वेदी पर बुलाया और उनके सामने हवन साम्रगी व आहुति के लिए घी रख दिया। उन्होंने सभी को समझाते हुए कहा कि मैंं जैसे ही मंत्र का उच्चारण पूर्ण करूं आप अपने सामने रखी हवन साम्रगी मे से थोड़ी मात्रा उठाकर हवन कुंड में स्वाहा बोलते हुए अर्पित कर देना और उन्होंने परिवार के मुखिया को घी का पात्र देते हुए यहीं करने को कहा। समय पर हवन प्रारंभ हुआ। हर परिजन व मुखिया हवन में थोड़ी मात्रा में ही घी व हवन साम्रगी इस आश्य से डाल रहे थे कि साम्रगी शीघ्र समाप्त ना हो जाएं। सभी का ध्यान शेष रही साम्रगी पर केन्द्रित था। पूजा समाप्त हो गई। चंूकि सभी ने अपने अपने हिस्से की हवन साम्रगी को बचा कर रखा था तो सभी के सम्मुख साम्रगी बच गई। आचार्य ने सभी से कहा कि शेष साम्रगी को एक साथ कुंड़ में डाल दे। सारी साम्रगी एक साथ कुंड में स्वाहा के साथ अर्पित कर दी गई जिस वजह से कमरे में धुआं ही धुआं हो गया। इतना प्रचुर धुआं हुआ कि सभी को अपने स्थान से हट जाना पड़ा। काफी देर पश्चात् धुआं समाप्त हुआ।
संस्मरण का अभिप्राय यही से प्रारंभ होता है कि पूजा में सम्मिलित सभी परिजनो को यह मालूम था कि सारी हवन सामग्री को हवन कुड़ में ही डालना है पर सभी ने उसे बचाए रखा कि कहीं बीच में ही साम्रगी समाप्त ना हो जाएं। हम भी हमारे दैनिक जीवन में ऐसा ही करते है। हम अंत के लिए बहुत धन संपति, पदार्थ, अनुपयोगी साम्रगी इस आशय के साथ बचाए रखते है कि वे भविष्य में वह उपयोगी होगी। समय पर जिदंगी की पूजा समाप्त हो जाती है और हवन सामग्री रूपी धन संपति बची रह जाती है। हम दुनिया में इतने खो जाते है कि यह भूल जाते है कि सब कुछ यहीं रह जाना है साथ कुछ नहीं जाने वाला है। संसार एक हवन कुंड़ समान ही है और जीवन एक पूजा ही तो है, एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है। अच्छी पूजा वहीं है जिसमें हवन कुुड़ में सही पूजा साम्रगी का उपयोग की कला आप सीख ले कि साम्रगी भी समाप्त ना हो और हवन भी पूरा हो जाएं।
दोस्तो यह मनुष्य जीवन बार बार नहीं मिलेगा क्यों ना समय रहते हुए सोच व पैसे का सदुपयोग सही दिशा में करे। समय पर सेवा कार्य की आहुति में अपने अतिरेक में से समाज के पीडि़तो, दुखियों को नि:स्वार्थ भाव से प्रदान कर दे। क्या आप भी ऐसा करने की सोच रखते है?

DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
dineshkgarg.blogspot.com

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