पिता नमक की झील

(फादर्स डे’ के लिए विशेष)

शिव शंकर गोयल
हमारे देश के कुछ पूर्वोत्तर हिस्सों को छोडकर अधिकांश में पितृ सत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था हैं. हालांकि इसमें पिता एक महत्वपूर्ण ईकाई है लेकिन हमारे धर्मग्रन्थों में उसकी स्तुति माताके बाद ही की गई हैं (मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः आदि.)’ इंगलिश भाषा में परिवार में जिसे ‘फादर’ कहते है उसे हिन्दी में पिता, बाबुल, बापू, बाप इत्यादि कई नामों से पुकारा जाता हैं. रोमन कैथोलिक तथा आर्थोडैक्स चर्च के पुजारियों तथा उनके द्वारा संचालित स्कूल-कालेजों में पढानेवालें कई शिक्षकों को भी ‘फादर’ ही कह कर पुकारते हैं. आधुनिक समय में प्रति वर्ष जून माह के तीसरे रविवार को ‘फादर्स डे’ मनाया जाता हैं.
वैसे तो ईश्वर को भी परमपिता कहा गया है. ब्रहमाजी को जगत की उत्पत्ति करनेवाला होने से ‘जगतपिता’ कहा गया है.
परिवार के पूर्वजों को भी कभी कभी ‘पितामहः’ की संज्ञा दी जाती है जैसे भीष्म को ‘भीष्म पितामहः’ कहा जाता था. किसी कौम का उदगम स्थान हो उसे ईतिहास में ‘फादर्स लैंड’ यानि ‘पैतिृक भूमि’ के नाम से जाना जाता हैं जैसे मुगलों की पैतिृक भूमि ईरान थी. किसी भी क्षेत्र में प्रारम्भिक एवं विलक्षण काम करने वाले के लिए उस क्षेत्र विशेष का पिता कहा जाता है मसलन हमारे देश में दादा साहब फाल्के को फिल्म का और विटठलदास मोदी आरोग्य मंदिर गोरखपुर)को प्राकृतिक चिकित्सा का पिता कहा जाता हैं. इसी तरह जिलारी को विश्व में राजनीतिक कार्टून का पितामह कहा जाता है. भारत में यह पदवी शंकर्स वीकली के संस्थापक श्री शंकर पिल्लैई को दी गई हैं. विश्व में सर्वप्रथम हृदय प्रत्यारोपण की सर्जरी करनेवाले स्वः डा. क्रिश्ष्चियन बेनार्ड (केप टाउन) को Father of Heart Transplantation के नामसे जाना जाता हैं.
हमारे देश में आजाद भारत की नींव रखनेवालें महात्मा गांधी को ‘राष्ट्पिता कहा गया हैं. नगर की सेवा करनेवाले नगरपरिषद के अध्यक्ष को ‘नगरपिता’ की संज्ञा दी जाती हैं. इन सब पदवियों से हमें पिता की महत्वता का पता लगता हैं.
‘फादर’ यानि पिता को साहित्य में भी खूब स्थान मिला हैं. एक उदाहरण देखिए जिसमे कवि दिनेश शुक्ल (नई गुदगुदी पत्रिका) पिता को नमक की झील की संज्ञा देते हुए क्या कहते है:-

‘…घर से मीलों दूर जब, मन में घुला विषाद,
पिता समय की धूप में, बरबस आये याद.
दुर्दिन थे घर में सही, हर विपदा की चोट,
आई नही ईमान में, कभी पिता के खोट.
जब जब अपनों ने किये, पहन नकाब, प्रहार,
पिता बहुत बेबस दिखे, बहुत दिखे लाचार.
आतप, दुख, कठिनाईयां, अनगिन मुश्किल क्लेश,
पिता यहां हर दौर में, हंसते रहे दिनेश’.
लडकियों को भी अपने पिता से बहुत प्यार होता है. यह बात वही जान सकता है जिसके घर में पुत्री या पुत्रियां हो. स्वःगोपालसिंह नेपालीकी एक कविता का अंश देखिये:- ‘… बाबुल तुम बगियां के तरूवर, हम तरूवर की चिडियां.
दाना चुगते उड जाएं हम, पिया मिलन की घडियां.
उड जाए तो लौट ना आएं, जो मोती की लडियां.
छितरायें नो लाख सितारें, नभ ने तेरी छाया में.
मंदिर मूरत तीरथ देखें, हमने तेरी काया में.
हमने दुख में भी सुख देखा, तुमने बस कन्या मुख देखा.
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो, हम कोमल पंखुडियां. …उड जाए.’
बाप-बेटें की कहावतें एवं मुहावरें भी खूब हैं. मसलन, ‘कटोरें में कटोरा, बेटा बाप से भी गोरा’, ‘आगरे का पेठा, बाप खायें या बेटा’,एक मुहावरा है ‘जरूरत पडने पर गधे को बाप बनाना पडता है’ हालांकि यह मुहावरा चुनाव के समय ही ज्यादा इस्तैमाल होता हैं.

ई. शिव शंकर गोयल

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