सम्भवतः यह वैचारिक अतिरेक हो, लेकिन इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि आज रोज सच की हत्या इस सलीके से हो रही है कि दफनाने के लिए शव की शिनाख्त तक मुश्किल है।
यह सब अनायास या अप्रत्यक्षित नहीं है। अनैतिक सत्ताएं और आवारा पूंजीवाद के गठजोड़ की अवैध संतान दुनिया की हर वैध उत्पत्ति के लिए खतरा बन चुकी है।
तकनीक और सूचना क्रांति के युग मे तथ्यों तक पहुंचने का तरीका ही कुछ ऐसा है। हम कुछ खोजना चाहते हैं तो सबसे ऊपर वही दिखेगा जिसे हम देखना चाहते है, वह नहीं जो हमें देखना चाहिए। सबसे ज्यादा चाहत, देखा-सुना तथ्य- सत्य नहीं, सनसनी होता है। सतही होता है..। सत्य से दो दूर होता है…।
फरेब के प्रति दृश्य का अदृश्य आकर्षण, वाँछित सूचना में सम्बंधित सनसनी को सच पर अधिरोपित कर देता है। इसके ठीक उलट अनैतिक, असत्य, आतंक, हिंसा, घृणा वाले तथ्य को नए सिरे से माहिम मंडित कर उन्हें हमारी आदत बना देता है।
यह भी सच है कि युवा पीढ़ी का भविष्य और समय इसी से निर्मित होना है। लेकिन यही वह वजह भी है जिसे देखकर डर लगता है। जीवन का सबसे जरूरी उपकरण जब सच और स्वम को पहचानने की नजरें ही छीन लेगा तो फिर किसी भी उजाले के क्या अर्थ रह जाएँगे।भयावय अंधकार में कितनी देर कृत्रिम रोशनी से सूरज निकल सकता है।
मेरी बात में नैराश्य, नॉस्टेल्जिया या नकारात्मकता नजर आ सकती है। है भी..। मैं या मुझ सरीखे लोग, जिन्होंने सच को परिवार-परिवेश में सम्मान पाते देखा है उन्हें झूठ की जयजयकार विचलित करती है। वे जब भी सच की पैरवी में खड़े होते हैं, झूठों के समवेत स्वर उन्हें पापाचार या दकियानूसी बताकर गरियाते हैं।
आभास की यथार्थ दुनिया में, सच के शव पर झूठ का नर्तन, दादी-नानी वाली राजा हरिश्चंद्र की कहानियों को खा गया है। पिताओं की पीढ़ी से गौतम गाँधी के किस्से छीन लिए है। पीढ़ियों की किताबों से साध्य और साधन के पृष्ठ हटा दिए हैं।
यही कारण है कि गाँव का सबसे वाचाल व्यक्ति सरपंच बन जाता है। शहर के सबसे सबसे बदनाम नाम की प्रशस्तियाँ गाई जाती हैं ।प्रदेश,देश, दुनिया इसी को बहुगुणित कर अपना-अपना नायक गढ़ रहे हैं।
पिछले दस पन्द्रह वर्षों में बदले मानक इस बात गवाह हैं ।कभी विश्व के प्रचीनतम लोकतंत्र और दास प्रथा के पोषक देश में अश्वेत राष्ट्रपति(बराक ओबामा) का वंदन था है। गांधी का अनुयायी होने पर वह शांति दूत माना गया था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सर्वकालिक श्रेष्ठतम अर्थशास्त्री (डॉ मन मोहन सिंह) व वैज्ञानिक (ए पी जे अब्दुल कलाम) नेतृत्व दे रहे हैं। पूर्ण बहुमत होते हुए एक स्त्री (सोनिया गाँधी) सत्ता के सबसे बड़े शिखर को नकार रही थी। दुनिया का बौद्धिक तबका हमारे चयन से सात्विक ईर्ष्या कर रहा था।
आज दुनिया भर की गर्वोक्ति के कारण बदल गए हैं। कहने की जरूरत नहीं, देश-दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाले नायकों का क्या चरित्र है। वे हमारा चयन है। हमारे नैतिक पतन का परिचायक हैं। हमारे भीतर झूठ के प्रति सम्मान का परिणाम हैं।
झूठ स्वीकारने की वृति ने हमें झूठ का पुजारी बना दिया है। हमारे पास लड़ने के लिए कोई नैतिक शस्त्र नहीं है।हम अनैतिक युद्ध मे मर खप जाने को अभिशप्त हैं..।
*हमारे कंधों पर सच का शव रखा है, जिसे विसर्जित करने के लिए कहीं कोई पानी का घट नहीं मिल रहा..। हम अपनी पीढ़ियों को यह शव विरासत में सौंप कर जाएंगे।*
*रास बिहारी गौड़*