ईर्ष्या ही है जीवन को नारकीय बनाने की जन्मदात्री पार्ट 4

j k garg
भूल जाओ और माफ़ करने की निति को अपनाये | परिचित और अपरिचित लोगो का अभिवादन मुस्कराते हुये करें ऐसा करने से जहाँ आपके साथ काम करने वालों को हार्दिक खुशीयाँ मिलेगी वहीं आपको विश्वास पात्र दोस्त भी मिल जायगें |

जीवन में क्रोध की जगह विनम्रता एवं सहनशीलता को अपनायें क्योंकि क्रोध ही हमारे मन में ईर्ष्या-जलन-डाह तथा भय के विशालु बीज बोता है | साधारणतया पेट की मांसपेशिया का सिकुड़ना या पेट दर्द का मुख्य कारण भय-ईर्ष्या की भावना से त्रस्त होना ही होता है | जब कभी आपके मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो तो उसी वक्त तुरंत गहरी गहरी सांस लें और गहरी साँस को छोड़ें। सांस छोड़ते समय मन में कल्पना करें कि आपकी नकारात्मक भावनाएं धुएं के रूप में मुहं के जरिये आपके मन से बाहर निकल रही हैं। सुबह उठते ही अपने आराध्यदेव को नमन करें और यह संकल्प लें कि आप अपने परिजनों, मित्रों, सहकर्मियों, अधिनस्त कर्मचारियों को वो जैसे है उन्हें उसी रूप में स्वीकार करेगें और उन्हें बिना शर्त स्नेह प्यार और सम्मान देगें |

डा. जे. के. गर्ग

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