Dinesh Gargबहुत बार ऐसा होता है कि आकाश में धटाटोप मेध छाए रहते हैं किंतु बरसते नहीं यह देखकर वर्षा की एक बूँद के लिए अतृप्त किसान आसमां की ओर मुख ताक कर बरसने का इंतजार करता है उसके मन में उस समय जो भाव उठते है वही भाव समाज के उन दीन हीन व्यक्तियों के मन में जागृत होते हैं जो अपने समक्ष समाज के धनी मानी लोगो को देखकर उनसे आशा रखते है कि वे अपनी सुख समृद्घि में से कुछ भाग उनके जीवनयापन के लिए उन्हें भी प्रदान करेगें। भाग्यवश समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें जन्म से ही सुखी होने का गौरव प्राप्त होता है उन्हें वंश परंपरागत सभी कुछ अनायास ही मिल जाता हैं और जीने के सभी श्रेष्ठï साधन उपलब्ध होते हैं उसी समाज में बहुत से लोग जन्म से आश्रित व साधन विहीन होते हैं और उनकी आशा की किरण समाज का उच्च वर्ग बन जाता है और धनी लोग उन्हीं आश्रितो को कुछ देकर अपनी उच्चता का दंभ भरते है लेकिन वस्तुत: सज्जन वही है जो अनुनय विनय तथा दीन वचनों की प्रतीक्षा किए बिना भाग्यहीन व्यक्तियों को सम्मानपूर्वक सहारा देते है और उनका कर्तव्य है कि वे समाज के किसी भी वर्ग को इतना दीन न बनने दें कि वह अपने मनुष्योचित स्वाभिमान का परित्याग करने को मजबूर हो जाए। हम सभी सेवा कार्य करते है लेकिन उस कार्य का प्रतिफल प्रशंसा के रूप में तत्काल ही चाहते है। परिस्थितियों को बदलने में समय नहीं लगता। परोपकार को अपनी यश कीर्ति का जरिया बना लेते ही हमे यह भी सोच लेना चाहिए कि स्थितियां यदि परिवर्तित हो गई तो हमारे उस दंभ का क्या हश्र होगा? सेवा हमेशा निस्वार्थ व दिखावे से परे ही फलदायी हो सकती है। सेवा के कार्यो में नियमितता रखते हुए हम हमेशा ऐसे कार्य करें जिनसे व्यक्ति अपने आपको दीन हीन महसुस ना करें। हम ऐसे प्रयास ज्यादा से ज्यादा करें कि पीडित व्यक्तियों के स्बाबलम्बन पर चोट ना लगें। हम अपने सेवा कार्यो से उन्हे आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें तभी हमारी सेवा सार्थक होगी। सेवा कार्यो में केवल हम निमित मात्र है की सोच ही समाज के लिए प्रेरणादायी होगी।