नजरें झुकी झुकी रहती है जनाब ! हास्य- व्य़ंग्य

शिव शंकर गोयल
आजकल हर कोई अपने घर में है मानो किसी कम्पार्टमेंट में सिमटा हुआ बैठा हो और फॉरवर्ड करने में लगा हुआ है. अगर घर से बाहर निकलता भी है तो मुंह छुपाता है जैसे पहले कर्जदार मांगनेवालों से, किरायेदार, बकाया रहने पर, मकान मालिकों से मुंह छुपाते थे इतना ही नही करीब करीब सभी अपने स्मार्ट फोन के सामने सिर-नजरें-झुकायें रहते है.

जबकि पहले इन्ही लोगों में से कई फिल्म “लीडर” का गीत “अपनी आजादी को हम, हरगिज मिटा सकते नही, सिर कटा सकते है लेकिन सिर झुका सकते नही” बडे जोश-खरोश से गाते थे. इतना ही नही वह नवयौवनाएं जो कभी दिल्ली के कनाटप्लेस के हनुमान मंदिर के आगे भी सिर नही झुकाती थी और दूर से ही हाय हन्नु ! कह कर निकल जाती थी वह अब स्मार्ट फोन के आगे सिर झुकाये रहती है. बलिहारी है !

मैं मेरठ के धर्मेन्द्र सिंह जो कि 8 फुट 1 इंच लम्बे है, की बात तो मान सकता हूं जो किसी से भी बात करते है तो अपन नजरें झुकायें रहते है.
कही ऐसा तो नही है कि इन लोगों ने शर्म के मारे अपनी नजरें इसलिए झुका रखी है क्योंकि अपने देश में अब भी

⦁ सिर पर मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म नही हुई है. कुछ जाति विशेष के लोग सेप्टिक टैंक, सीवर आदि में बिना किसी सुरक्षा उपायों के सफाई करने उतारे जाते है और उनमें से कई अपनी जान गंवाते है.

⦁ अधिकांश आदिवासियों, जिनमें सहरिया प्रमुख है, की हालत अब भी बहुत दयनीय है.

⦁ मराठवाडा में गन्ने के खेतों में मजदूरी करनेवाली महिलाओं की माहवरी के दिनों में अनुपस्थित रहने पर मजदूरी कट जाती है. इस कटौती के नुकसान को बचाने के लिए वह अपना गर्भाशय निकलवा देती है.

⦁ कई स्थानों पर ऋण न चुका पाने की वजह से किसान आत्महत्या कर लेते है. बलात्कार, दुष्कर्म और लडकियों पर तेजाब फेंकने की घटनाओं में वृध्दि हो रही है.
⦁ गरीबी-अमीरी की खाई कम होने की बजाय बढती जा रही है.
कोई नही बता रहा कि यह नजरें कब उठेगी ? क्योंकि नजरों का बडा महत्व है. किसी शायर ने कहा भी है :-
“ नजरें ही बता देती है,फसाना किसी का.नजरें ही बना देती है दिवाना किसी का,
नजरे हंसाती है, नजरें रूलाती है,
नजरें ही बसा देती है, घराना किसी का.”

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